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[ मोक्षमार्गप्रकाशक
तथा इन शास्त्रोंमें त्रिलोकादिकका गम्भीर निरूपण है, इसलिये उत्कृष्टता जानकर भक्ति करते हैं। परन्तु यहाँ अनुमानादिकका तो प्रवेश है नहीं, इसलिये सत्य-असत्यका निर्णय करके महिमा कैसे जानें ? इसलिये इस प्रकार सच्ची परीक्षा नहीं होती। यहाँ तो अनेकान्तरूप सच्चे जीवादितत्त्वोंका निरूपण है और सच्चा रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग दिखलाया है। उसीसे जैनशास्त्रोंकी उत्कृष्टता है, उसे नहीं पहिचानते। क्योंकि यह पहिचान हो जाये तो मिथ्यादृष्टि रहती नहीं।
इस प्रकार शास्त्रभक्तिका स्वरूप कहा।
इस प्रकार इसको देव-गुरु-शास्त्रकी प्रतीति हुई, इसलिये व्यवहारसम्यक्त्व हुआ मानता है। परन्तु उनका सच्चा स्वरूप भासित नहीं हुआ है; इसलिये प्रतीति भी सच्ची नहीं हुई है। सच्ची प्रतीतिके बिना सम्यक्त्वकी प्राप्ति नहीं होती; इसलिये मिथ्यादृष्टि ही है।
सप्ततत्त्वका अन्यथारूप
तथा शास्त्रमें “ तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं" ( तत्त्वार्थसूत्र १-२) ऐसा वचन कहा है - इसलिये शास्त्रोंमें जैसे जीवादि तत्त्व लिखे हैं वैसे आप सीख लेता है और वहाँ उपयोग लगाता है, औरोंको उपदेश देता है; परन्तु उन तत्त्वोंका भाव भासित नहीं होता और यहाँ उस वस्तुके भावहीका नाम तत्त्व कहा है। सो भाव भासित हुए बिना तत्त्वार्थश्रद्धान कैसे होगा ? भाव भासन क्या है ? सो कहते हैं :
__ जैसे कोई पुरुष चतुर होनेके अर्थ शास्त्र द्वारा स्वर, ग्राम, मूर्छना, रागोंका स्वरूप और ताल-तानके भेदको सीखता है; परन्तु स्वरादिका स्वरूप नहीं पहिचानता। स्वरूपकी पहिचान हुए बिना अन्य स्वरादिकको अन्य स्वरादिकरूप मानता है, अथवा सत्य भी मानता है तो निर्णय करके नहीं मानता है; इसलिये उसके चतुरपना नहीं होता। उसी प्रकार कोई जीव सम्यक्त्वी होनेके अर्थ शास्त्र द्वारा जीवादिक तत्त्वोंका स्वरूप सीख लेता है; परन्तु उनके स्वरूपको नहीं पहिचानता है स्वरूपको पहिचाने बिना अन्य तत्त्वोंको अन्य तत्त्वरूप मान लेता है, अथवा सत्य भी मनाता है तो निर्णय करके नहीं मानता; इसलिये उसके सम्यक्त्व नहीं होता । तथा जैसे कोई शास्त्रादि पढ़ा हो या न पढ़ा हो; परन्तु स्वरादिके स्वरूपको पहिचानता है तो वह चतुर ही है। उसी प्रकार शास्त्र पढ़ा हो या न पढ़ा हो; यदि जीवादिकके स्वरूपको पहिचानता है तो वह सम्यग्दृष्टि ही है। जैसे हिरन स्वररागादिकका नाम नहीं जानता परन्तु उसके स्वरूपको पहिचानता है; उसी प्रकार तुच्छबुद्धि जीवादिकका नाम नहीं जानते परन्तु उनके स्वरूपको पहिचानते हैं कि -
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