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[ मोक्षमार्गप्रकाशक
आज राजा को भेंट करे, वहाँ राजा तो कुछ कहे नहीं और आप ही “राजाने मुझे इनाम दी” – ऐसा कहकर उसे अंगीकार करे तो यह खेल हुआ। उसी प्रकार यहाँ भी ऐसा करनेसे भक्ति तो हुई नहीं, हास्य करना हुआ।
फिर ठाकुर और तुम दो हो या एक हो ? दो हो तो तूने भेंट की, पश्चात् ठाकुर दे तो ग्रहण करना चाहिए, अपनेआप ग्रहण किसलिये करता है ? और तू कहेगा-ठाकुरकी तो मूर्ति है, इसलिये मैं ही कल्पना करता हूँ; तो ठाकुरके करने का कार्य तूने ही किया, तब तू ही ठाकुर हुआ। और यदि एक हो तो भेंट करना, प्रसाद कहना झूठा हुआ। एक होने पर यह व्यवहार सम्भव नहीं होता; इसलिये भोजनासक्त पुरुषों द्वारा ऐसी कल्पना की जाती है।
तथा ठाकुरजी के अर्थ नृत्य-गानादि कराना; शीत, ग्रीष्म, वसन्तादि ऋतुओंमें संसारियोंके सम्भवित ऐसी विषयसामग्री एकत्रित करना इत्यादि कार्य करते हैं। वहाँ नाम तो ठाकुरका लेना और इन्द्रियोंके विषय अपने पोषना सो विषयासक्त जीवों द्वारा ऐसा उपाय किया गया है। तथा वहाँ जन्म, विवाहादिककी व सोने-जागने इत्यादिकी कल्पना करते हैं सो जिस प्रकार लडकियाँ गुड्डा-गुड़ियोंका खेल बना कर कौतूहल करती हैं; उसी प्रकार यह भी कौतूहल करना है, कुछ परमार्थरूप गुण नहीं हैं। तथा बाल ठाकुर का स्वांग बना कर चेष्टाएँ दिखाते हैं. उससे अपने विषयों का पोषण करते हैं और कहते हैं - यह भी भक्ति है, इत्यादि क्या-क्या कहें ? ऐसी अनेक विपरीतताएँ सगुण भक्तिमें पायी जाती हैं।
इस प्रकार दोनों प्रकार की भक्तिसे मोक्षमार्ग कहते हैं सो उसे मिथ्या दिखाया।
ज्ञानयोग मीमांसा
अब अन्यमत प्ररूपित ज्ञानयोग से मोक्षमार्गका स्वरूप बतलाते हैं:
एक अद्वैत सर्वव्यापी परब्रह्मको जानना उसे ज्ञान कहते हैं सो उसका मिथ्यापना तो पहले कहा ही है।
तथा अपनेको सर्वथा शुद्ध ब्रह्मस्वरूप मानना, काम-क्रोधादिक व शरीरादिकको भ्रम जानना उसे ज्ञान कहते हैं; सो यह भ्रम है। आप शुद्ध है तो मोक्ष का उपाय किसलिये करता है? आप शुद्ध ब्रह्म ठहरा तब कर्त्तव्य क्या रहा? तथा अपनेको प्रत्यक्ष कामक्रोधादिक होते देखे जातें हैं, और शरीरादिक का संयोग देखा जाता है; सो इनका अभाव होगा तब होगा, वर्तमानमें इनका सद्भाव मानना भ्रम कैसे हुआ ?
फिर कहते हैं - मोक्षका उपाय करना भी भ्रम है। जैसे - रस्सी तो रस्सी ही है, उसे सर्प जान रहा था सो भ्रम था, भ्रम मिटनेपर रस्सी ही है, उसी प्रकार आप तो ब्रह्म ही है, अपनेको अशुद्ध जान रहा था सो भ्रम था, भ्रम मिटने पर आप ब्रह्म
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