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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १०८] [ मोक्षमार्गप्रकाशक तब वह कहता है - यह जीवोंके अपने कर्त्तव्यका फल है। तब उससे कहते हैं कि - जैसे शक्तिहीन लोभी झूठा वैद्य किसीका कुछ भला हो तो कहता है मेरा किया हुआ है; और जहाँ बुरा हो, मरण हो, तब कहता है इसकी ऐसी ही होनहार थी। उसी प्रकार तू कहता है कि भला हुआ वहाँ तो विष्णुका किया हुआ और बुरा हुआ तो इसके कर्त्तव्यका फल हुआ। इस प्रकार झूठी कल्पना किसलिये करे ? या तो बुरा व भला दोनो विष्णुके किये कहो, या अपने कर्त्तव्यका फल कहो। यदि विष्णुका किया हुआ तो बहुत जीव दु:खी और शीघ्र मरते देखे जाते हैं सो ऐसा कार्य करे उसे रक्षक कैसे कहें ? तथा अपने कर्त्तव्यका फल है तो करेगा सो पायेगा, विष्णु क्या रक्षा करेगा ? तब वह कहता है - जो विष्णुके भक्त हैं उनकी रक्षा करता है। उससे कहते हैं कि -यदि ऐसा है तो कीड़ी कुन्जर आदि भक्त नहीं हैं उनको अन्नादिक पहुचानेमें व संकट में सहाय होने में व मरण न होनेमें विष्णुका कर्त्तव्य मानकर सर्वका रक्षक किसलिये मानता है, भक्तोंहीका रक्षक मान। सो भक्तोंका भी रक्षक नहीं दीखता, क्योंकि अभक्त भी भक्त पुरुषोंको पीड़ा उत्पन्न करते देखे जाते हैं। तब वह कहता है – कई जगह प्रादादिककी सहाय की है। उससे कहते हैं - जहाँ सहाय की वहाँ तो त वैसा ही मान; परन्त हमतो प्रत्यक्ष म्लेच्छ मसलमान पुरुषों द्वारा भक्त पुरुषोंको पीड़ित होते देख व मन्दिरादिको विध्न करते देखकर पूछते है कि यहाँ सहाय नहीं करता, सो शक्ति नहीं है या खबर ही नहीं है। यदि शक्ति नहीं है तो इनसे भी हीन शक्तिका धारक हुआ। खबर भी नहीं है तो जिसे इतनी भी खबर नहीं है सो अज्ञान हुआ। और यदि तू कहेगा - शक्ति भी है और जानता भी है; परन्तु इच्छा ऐसी ही हुई, तो फिर भक्तवत्सल किसलिये कहता है ? इस प्रकार विष्णुको लोकका रक्षक मानना नहीं बनता। फिर वे कहते हैं - महेश संहार करता है। सो उससे पूछते हैं कि - प्रथम तो महेश संहार सदा करता है या महाप्रलय होता है तभी करता है ? यदि सदा करता है तो जिस प्रकार विष्णुकी रक्षा करनेसे स्तुति की; उसी प्रकार उसकी संहार करने से निन्दा करो। क्योंकि रक्षा और संहार प्रतिपक्षी हैं। तथा यह संहार कैसे करता है ? जैसे पुरुष हस्तादिसे किसीको मारे या कहकर मराये; उसी प्रकार महेश अपने अंगोंसे संहार करता है या आज्ञासे मराता है ? तब क्षणक्षणमें संहार तो बहुत जीवोंका सर्वलोकमें होता है, यह कैसे-कैसे अंगोंसे व किस-किसको आज्ञा देकर युगपत् ( एक साथ) कैसे संहार करता है ? तथा महेश तो इच्छा ही करता है, Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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