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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाँचवाँ अधिकार] [१०७ है ब्रह्माने पहले तो उत्पन्न किये, फिर वे इसके आधीन नहीं रहे, इस कारण ब्रह्माको दुःख ही हुआ। तथा यदि कहोगे - ब्रह्माके परिणमित करनेसे परिणमित होते हैं तो उन्हें पापरूप किसलिये परिणमित किया ? जीव तो अपने उत्पन्न किये थे, उनका बुरा किस अर्थ किया ? इसलिये ऐसा भी नहीं बनता। तथा अजीवोंमें सुवर्ण, सुगन्धादिसहित वस्तुएँ बनायीं सो तो रमण करने के अर्थ बनायीं; कुवर्ण, दुर्गन्धादि सहित वस्तुएँ दुःखदायक बनायीं सो किस अर्थ बनायीं? इनके दर्शनादिसे ब्रह्माको कुछ सुख तो नहीं उत्पन्न होता होगा। तथा तू कहेगा पापी जीवोंको दुःख देनेके अर्थ बनायी; तो अपने ही उत्पन्न किये जीव उनसे ऐसी दुष्टता किसलिये की, जो उनको दुःखदायक सामग्री पहले ही बनायी ? तथा धूल, पर्वतादि कुछ वस्तुएँ ऐसी भी हैं जो रमणीक भी नहीं है और दुःखदायक भी नहीं हैं- उन्हें किस अर्थ बनाया ? स्वयमेव तो जैसी-तैसी ही होती हैं और बनानेवाला जो बनाये वह तो प्रयोजन सहित ही बनाता है; इसलिये ब्रह्माको सृष्टिका कर्ता कैसे कहा जाता है ? तथा विष्णुको लोकका रक्षक कहते हैं। रक्षक हो वह तो दो ही कार्य करता है - एक तो दुःख उत्पत्तिके कारण नहीं होने देता और एक विनष्ट होनेके कारण नहीं होने देता। सो लोकमें तो दुःखहीकी उत्पत्तिके कारण जहाँ-तहाँ देखे जाते हैं और उनसे जीवोंको दुःख ही देखा जाता है। क्षुधा-तृषादि लग रहे हैं, शीत-उष्णादिकसे दुःख होता है, जीव परस्पर दुःख उत्पन्न करते हैं, शस्त्रादि दुःखके कारण बन रहे हैं, तथा विनष्ट होनेके अनेक कारण बन रहे हैं। जीवोंको रोगादिक व अग्नि, विष, शस्त्रादिक पर्यायके नाशके कारण देखे जाते हैं, तथा अजीवोंके भी परस्पर विनष्ट होने के कारण देखे जाते हैं। सो ऐसे दोनों प्रकारकी ही रक्षा नहीं की तो विष्णुने रक्षक होकर क्या किया ? वह कहता है- विष्णु रक्षक ही है। देखो क्षुधा-तृषादिकके अर्थ अन्न-जलादिक बनाये हैं; कीड़ीको कण और कुन्जरको मन पहुँचता है, संकटमें सहायता करता है। मृत्युके कारण उपस्थित होने पर भी टिटहरीकी भाँति उबारता है - इत्यादि प्रकार से विष्णु रक्षा करता है। उससे कहते हैं- ऐसा है तो जहाँ जीवोंको क्षुधा-तृषादिक बहुत पीड़ित करते हैं और अन्न-जलादिक नहीं मिलते, संकट पड़ने पर सहाय नहीं होती, किंचित कारण पाकर मरण होजाता है, वहाँ विष्णुकी शक्ति हीन हुई या उसे ज्ञान ही नहीं हुआ ? लोकमें बहुत तो ऐसे ही दुःखी होते हैं, मरण पाते हैं; विष्णुने रक्षा क्यों नहीं की? * एक प्रकारका पक्षी जो एक समुद्रके किनारे रहता था। समुद्र उसके अण्डे बहा ले जाता था। उसने दुःखी होकर गरुड़ पक्षी द्वारा विष्णुसे प्रार्थना की तो उन्होंने समुद्रसे अण्डे दिलवा दिये। ऐसी पुराणोंमें कथा है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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