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साहित्य प्रकाशन के साथ ही इस विभाग के द्वारा गाँव-गाँव में तत्त्वप्रचार-प्रसार की गतिविधियों में सक्रियता लाने हेतु प्रचार विभाग के द्वारा आठ विद्वानों की नियुक्ति करने की योजना है, ये विद्वान गाँव-गाँव में भ्रमण करके प्रवचन, पाठशाला, सवाध्याय, शिविर, युवावर्ग में तत्त्वरुचि इत्यादि प्रचार-प्रसार की विभिन्न महत्वपूर्ण गतिविधियों को अधिकतम सक्रिय बनायेंगे।
विगत जुलाई १९८३ में प्रचार कार्य हेतु श्री अशोककुमारजी लुहाड़िया शास्त्री एवं श्री रमेशकुमारजी 'मंगल' की नियुक्ति की गई है। इनके कार्यक्रम अत्यधिक सफल रहे हैं और समाज द्वारा सराहे भी गये हैं।
यह कहते हुए मुझे गौरव महसूस हो रहा है कि विगत सात वर्षों में हुई इस द्रस्ट की सम्पूर्ण प्रगति का वास्तविक श्रेय द्रस्ट के माननीय अध्यक्ष पंडित श्री बाबूभाईजी मेहता को ही है। जो द्रस्ट की समग्र गतिविधियों के प्राण हैं। वर्तमान में आदरणीय श्री बाबूभाईजी की अस्वस्थता के समय ज्ञानचन्दजी विदिशावाले देश भर में घूम-घूम कर तत्त्वप्रचार-प्रसार के साथ-साथ द्रस्ट का आर्थिक पक्ष और अधिक सुदृढ़ बनाने में सक्रिय हैं।
'इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ द्वारा अधिक से अधिक तत्त्वप्रचार हो' - पूज्य गुरुदेव श्री की इस पवित्र भावना को ध्यान में रखकर इसका लागत से भी कम मूल्य मात्र आठ रुपये रखा गया है। एतदर्थ अनेक महानुभावों ने सहयोग प्रदान किया है। हम उनके आभारी हैं।
इसप्रकार यह अपूर्व प्रकाशन प्रस्तुत करने में हमें अत्यन्त हर्ष हो रहा है। आशा है, आत्माथीरजन इसका पूरा-पूरा लाभ लेकर निजकल्याण के लिये निरन्तर प्रयत्नशील रहेंगे।
निवेदक १ मई, १९८४
राकेश कुमार जैन शास्त्री, जैनदर्शनाचार्य मैनेजर साहित्य प्रकाशन एवं पचार विभाग, जयपुर
शुद्धिपत्र (नोट :- कृपया स्वाध्याय प्रारम्भ करने से पूर्व निम्नलिखित अशुद्धियाँ अवश्य ठीक कर लें) पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध
शुद्ध ५ २२ वृषभान
वृषभानन ३९ ७ अपनी हीनता, उनकी उच्चता उनकी हीनता, अपनी उच्चता १३० १५ अयुनसिद्ध
अयुतसिद्ध २६८ ९ चारित्रका
चरित्रका
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