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यह लिखते हुए अत्यन्त प्रसन्नता है कि प्रारम्भ से ही प्रतिवर्ष इस महाविद्यालय के छात्र बोर्ड एवं विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करते आ रहे हैं।
विद्यार्थियों के आध्यात्मिक वातावरण को निरन्तर गति प्रदान करने हेतु प्रवचन, अध्यापन, लेखन आदि का समुचित प्रशिक्षण एवं अन्य सम्पूर्ण कार्य डॉ० हुकमचन्द भारिल्लके निर्देशन में होते हैं। छात्रों को जिनागम का ठोस विद्वान तैयार करने के साथ-साथ उनके जीवन को आध्यात्मिक, सात्त्विक, सदाचारमय व निष्पही बनाना ही संस्था का मूल उद्देश्य है।
इस महाविद्यालय के प्राचार्य एवं मंत्री क्रमशः श्री पं० रतनचन्दजी शास्त्री एवं श्री नेमीचन्दजी पाटनी हैं। छात्रों के अध्यापन कार्य में श्री अभयकुमारजी शास्त्री एम० काम०, श्री राकेशकुमारजी जैन दर्शनाचार्य, श्री शान्तिकुमारजी जैनदर्शनाचार्य, श्री प्रेमचन्दजी जैनदर्शनाचार्य, श्री वीरसागरजी शास्त्री, श्रीमती कमलाबाई भारिल्ल, श्री परमेश्वरदासजी मिश्र आदि का भी सहयोग प्राप्त होता है।
इस प्रकार आध्यात्मिकरुचि सम्पन्न विद्वान व प्रवचनकार की दृष्टि से विद्यार्थियों को तैयार किया जाता है। यह महाविद्यालय समाज को प्रतिवर्ष १२ विद्वान (शास्त्री) उपलब्ध कराता है।
(५) साहित्य प्रकाश एवं प्रसार विभाग
पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के स्वर्गवास के बाद यह बड़ी व्यग्रता से अनुभव किया जा रहा था कि बड़े-बड़े ग्रंथोंका प्रकाशन दुर्लभ-सा होता जा रहा है। एक तो इन ग्रंथों के प्रकाशन में लाखों रुपयों की आवश्यकता होती है, साथ-साथ शुद्ध प्रकाशन की भी जिम्मेदारी होती है।
इस दिशा में पंडित टोडरमल स्मारक द्रस्ट, जयपुर ने समयसार एवं मोक्षमार्गप्रकाशक जैसे बड़े बजट के प्रकाशन का कार्यभार अपने हाथों लिया और उनका प्रकाशन भी किया; परन्तु सभी संस्थाओं की अपनी-अपनी सीमायें हैं. मर्यादायें हैं।
इस क्षेत्र में श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तीर्थसुरक्षा द्रस्ट ने भी अपने 'जीवन्ततीर्थ जनवाणी के प्रचार-प्रसार के उददेश्य की पूर्ति हेतु अनुकरणीय कदम उठाया है। श्री वीतराग विज्ञान शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर, भीलवाड़ा के तुरन्त बाद १९ जून १९८३ को श्री टोडरमल स्मारक भवन, जयपुर में सम्पन्न तीर्थसुरक्षा द्रस्ट की मिटिंग में बड़े-बड़े ग्रन्थों के प्रकाशन एवं जिनवाणी का प्रचार-प्रसार सामाजिक स्तर पर घर-घर में हो - इस दृष्टि से विस्तृत विचार-विमर्श किया गया। तथा इस कार्य की पूर्ति हेतु 'साहित्य प्रकाशन एवं प्रचार विभाग' नामक नया विभाग खोला गया, जिसका कार्यालय श्री टोडरमल स्मारक भवन, जयपुर में रखा गया एवं उसकी व्यवस्था का भार मुझे सौंपा गया। इस विभाग के महत्वपूर्ण निर्णय लेने हेतु समिति का गठन हुआ, जिसमें निम्न सदस्य मनोनीत किये गये :१ श्री बाबूभाई चुन्नीलाल मेहता
२ डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल ३ श्री नेमीचन्दजी पाटनी एवं ४ श्री रमनलाल माणिकलाल शाह
इस प्रकाशन विभाग की भावी योजनाओंमें श्रुतभवनदीपक नयचक्र प्रवचनसार व पंचास्तिकायसंग्रह को जयसेनाचार्यदेवकृत संस्कृत टीका, सप्तभङ्गी तरङ्गिणी आदि संस्कृत ग्रन्थों का प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद , परीक्षामुखसूत्र की सर्वोपयोगी हिन्दी टीका, चिद्विलास , अनुभवप्रकाश आदि ढुंढारी भाषा के ग्रन्थों का प्रमाणिक हिन्दी अनुवाद, श्रावकधर्मप्रकाश का नया संशोधित संस्करण इत्यादि का प्रकाशन कराना है। उक्त सभी प्रकाशनों को क्रियान्वित करने हेतु कार्य प्रारम्भ किया जा चुका है।
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