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(१) तीर्थक्षेत्रों का जीर्णोद्धार
तीर्थक्षेत्रों पर होने वाले प्राकतिक आक्रमणों से सरक्षा हेत उनका जीर्णोद्धार करना आवश्यक है। एतदर्थ विभिन्न क्षेत्रों को दिनांङ्क १५ जनवरी १९८४ तक ५ लाख ५० हजार रुपयों की राशि द्रस्ट की ओर से दी जा चुकी है।
(२) तीर्थ सर्वेक्षण योजना
अप्राकृतिक आक्रमणों से तीर्थों की सुरक्षा हेतु सम्बन्धित वैधानिक दस्तावेजों का होना आवश्यक है, अतः एक तीर्थ सर्वेक्षण योजना तैयार की गई है; जिसके अन्तर्गत क्षेत्र का प्रामाणिक इतिहास, आवश्यक दस्तावेज, चल-अचल सम्पत्ति का विवरण आदि जानकारी सुरक्षित रखी जाती है।
तीर्थों की सुरक्षा एवं सर्वेक्षण योजना की सफलता हेतु कार्यकर्ताओं को प्रकाशित करने के लिये एक कार्यकत्ता प्रशिक्षण योजना भी है।
(३) जिनवाणी की शोध, प्रकाशन एवं विक्रय
हमारे प्राचीन ग्रंथ वर्तमान में यत्र-यत्र अव्यवस्थित और असुरक्षित रखना सर्वप्रथम कर्तव्य जानकर बैंगलौर एवं मद्रास में श्री जैन लिटरेचर रिसर्च इन्स्टीट्यूट की स्थापना की गई है।
इस दिशा में श्री १००८ गोम्मटेश्वर बाहुबली सहस्त्राब्दी के अवसर पर हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, तमिल और कन्नड़ - इसप्रकार छ: भाषाओंमें सत्साहित्य प्रकाशित करके उसे लागत या उससे भी कम मूल्य में जन-जन तक पहुँचाने की व्यवस्था की गई थी। एतदर्थ द्रस्ट ने पाँच लाख से भी अधिक रुपये खर्चा किये थे।
(४) श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय
जिस प्रकार सुयोग्य पुरातत्त्व एवं कानूनविद कार्यकर्ताओंके अभाव में तीर्थों की सुरक्षा सम्भव नहीं है, उसी प्रकार जिनागम के मर्मज्ञ विद्वानोंके अभाव में जिनवाणी की सुरक्षा एवं प्रचार-प्रसार भी सम्भव नहीं है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु नवीन पीढ़ी में अध्यात्म रुचि सम्पन्न ठोस विद्वान तैयार करने के लिये २४ जुलाई, १९७७ को जयपुर में श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय की स्थापना की गई है।
निरन्तर अध्ययन-मनन-चिन्तन का वातावरण एवं एकमात्र आत्महित की तीव्ररुचि इस महा विद्यालय की मौलिक विशेषता है, जिसका वास्तविक श्रेय स्व० पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी द्वारा उत्पन्न आध्यात्मिक क्रान्ति को ही है, जिसके प्रभाव से लाखों व्यक्ति जिनागम के अभ्यास द्वारा आत्महित में तत्पर हुए हैं।
इस महाविद्यालय के छात्र श्री दिगम्बर जैन आचार्य संस्कृत कालेज, जयपुर के माध्यम से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर की प्रवेशिका एवं उपाध्याय परीक्षा तथा राजस्थान विश्वविद्यालय की जैन दर्शन शास्त्री तथा जैनदर्शनाचार्य परीक्षा देते हैं; जो क्रमशः सेकेण्डरी, हायर सेकेण्डरी, बी० ए० तथा एम० ए० के समकक्ष हैं। इसके साथ ही बंगीय संस्कृत शिक्षा परिषद कलकत्ता की दिगम्बर न्याय प्रथमा, न्याय मध्यमा एवं न्यायतीर्थ एवं श्री वीतराग विज्ञान विद्यापीठ परीक्षा बोर्ड जयपुर की प्रवेशिका, विशारद आदि ग्रन्थशः परीक्षाओं में भी यहाँ के छात्र सम्मिलित होते हैं।
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