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डॉ ० हुकुमचन्दजी भारिल्लने इस ग्रंथ का संपादन कर इसे इतना प्रामाणिक, सुन्दर और सहज बोधगम्य बनाने में जो अथक श्रम किया है, उसका मूल्यांकन करना असम्भव है। का फल यह है कि यह ग्रंथ हमेशा के लिये सर्व प्रकार से प्रामाणिक और सुन्दर बन गया है, इसका श्रेय उनको प्राप्त हुआ है। यही इसका मूल्यांकन है। डाँ० साहब इसके लिये धन्यवाद के पात्र हैं।
संपादन के इस गुरुत्तर कार्य में डाँ ० साहब को श्री राजमलजी जैन, जयपुर प्रिण्टर्स का अमूल्य सहयोग मिला है; उनके बिना यह कार्य इतने अच्छे रूप में सम्पन्न नहीं हो पाता। यह कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है। अतः हम उनका भी आभार मानते हैं।
ऑफसेट मुद्रणकार्य कराने में श्री सुरेन्द्रकुमारजी अग्रवाल, दिल्ली तथा श्री राकेशकुमारजी जैन शास्त्री, जैनदर्शनाचार्य का अविस्मरणीय सहयोग प्राप्त हुआ है; एतदर्थ उनका भी आभारी हूँ।
यहाँ श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तीर्थसुरक्षा द्रस्ट तथा उसके साहित्य प्रकाशन एवं प्रचार विभाग का, जिसने इन बड़े-बड़े शास्त्रों को प्रकाशित करने का संकल्प किया है। उसकी गतिविधियों का संक्षिप्त परिचय देना अप्रसाङ्गिक नहीं होगा :
श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तीर्थसुरक्षा द्रस्ट
भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण महोत्सव वर्ष में सोनगढ़ में सम्पन्न परमागम मंदिर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर स्व० पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की छत्र-छाया में उनके मंगल आशीर्वाद से स्थापित श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तीर्थसुरक्षा द्रस्ट से अब दिगम्बर जैन समाज अपरिचित नहीं रहा।
तीर्थों एवं जीवन्ततीर्थ जिनवाणी की सुरक्षा में तत्पर इस द्रस्ट ने ७ वर्ष के इस अल्पकाल में ही दिगम्बर जैन समाज में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है। इसका जन्म ही प्राकृतिक-अप्राकृतिक आक्रमणों से तीर्थों एवं जीवन्ततीर्थ जिनवाणी की सुरक्षा की पवित्र भावना से हुआ है। समाज से भी इसे आशातीत सहयोग प्राप्त हुआ है। तथा इसने भी अपने कार्यों से समाज का मन मोह लिया है।
इस द्रस्ट का रजिस्ट्रेशन १३ मार्च १९७६ बम्बई द्रस्ट एक्ट के अन्तर्गत हुआ है।
इस द्रस्ट के प्रमुखतः दो कार्य हैं, जो दिगम्बर जैन तीर्थ एवं जीवन्ततीर्थ जिनवाणी की सुरक्षा से सम्बन्धित हैं। इस दिशा में द्रस्ट ने महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं :
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