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________________ ४४ મંગલ જ્ઞાન દર્પણ ભાગ-૧ अष्ट पाहूड भगवत् कुंदकुंदाचार्य विरचित वचनीकार- पं. जयचन्दजी छाबडा [1] अर्थ- जैसे स्फटिकमणि विशुध्ध है, निर्मल है, उज्वल है, वह परद्रव्य जो पीत, रक्त हरित पुष्पादिकसे युक्त होने पर अन्य सा दीखता है, पीतादिवर्णमयी दीखता है वैसे ही जीव विशुध्ध है स्वच्छस्वभाव है परन्तु यह [ अनित्य पर्यायमें अपनी भूल द्वारा स्वसे च्युत होता है तो ] रागद्वेषादिक भावोंसे युक्त होने पर अन्य अन्य प्रकार हुआ दिखता है यह प्रगट है। भावार्थ- यह ऐसा जानना कि रागादि विकार है वह पुद्गलके हैं और वे जीवके ज्ञानमें आकर झलकते हैं तब उनसे उपयुक्त होकर इस प्रकार जानता है कि ये भाव मेरे ही हैं, जब तक इनका भेदज्ञान नहीं होता है तबतक जीव अन्य अन्य प्रकार रूप अनुभवमें आता है। यह स्फटिकमणिका दृष्टान्त है उसके अन्य द्रव्य पुष्पादिकका डांक लगता है तब अन्यसा दिखता है, इस प्रकार जीव के स्वच्छभावकी विचित्रता जानना। [ गाथा-५१, पृष्ठ- २६१ ] श्री ज्ञान समुच्चयसार श्री तारणस्वामी विरचित [ अनुवादक- ब्र. शीतलप्रसादजी भावार्थ- द्वादशांग वाणी बहुत विशाल है इस समय उपलब्ध नहीं है । जितना कुछ वर्तमान में जिन आगम प्राप्त है उसको भी यदि समझ लिया जावे तो लोक अलोक जिन छ: द्रव्यों के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान हो जावे उसकी बुद्धि में निश्चय व्यवहार रूप से यह जगत जैसा है वैसा प्रतिभासने लग जावे तब मिथ्याज्ञान का तुर्त प्रलय हो जावे। [ श्लोक-७५, पृष्ठ-४० ] भावार्थ- यथार्थ निर्मल सम्यकदर्शन का धारी आत्मा परम विवेकी हो जाता है। उसको अविनाशी सिद्धपद अपने ही आपमें झलकता है तथा उस पद की सिद्धि का मार्ग एक अभेद रत्नत्रय स्वरूप शुद्धात्मानुभव है यह भी भले प्रकार झलकता है। [ श्लोक-१५३ ] [A] भावार्थ- यह जीव पुद्गल द्रव्य के विशेष गुणों से रहित है इसलिये अमूर्तिक है परन्तु एक वस्तु है इससे आकार अवश्य है । वह आकार अरूपी ज्ञानाकार है तथा लोकाकाश प्रमाण है । प्रदेशो की अपेक्षा जीव असंख्यात प्रदेशी है। ज्ञान की अपेक्षा सर्वव्यापी है, अनन्त है। ज्ञान में अनन्त पदार्थों के द्रव्यगुण-पर्याय एक समय में झलक रहे है तो भी इसके निर्मल ज्ञानमें अनन्त ऐसे विश्वों की झलकाने की शक्ति है । [ श्लोक-७७६, पृष्ठ-४५३ ]
SR No.008263
Book TitleMangal gyan darpan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhnaben J Shah
PublisherDigambar Jain Kundamrut Kahan
Publication Year2005
Total Pages469
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Education, & Religion
File Size3 MB
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