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________________ ३४ મંગલ જ્ઞાન દર્પણ ભાગ-૧ लघुतत्त्वस्फोट आचार्य अमृतचंद्रसूरिकृत अनु. डॉ. पन्नालाल जैन [ साहित्याचार्य] [] भावार्थ- यह विश्व चेतनाचेतनात्मक पदार्थों से भरा हुआ है। इनमें अचतेन पदार्थ-पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, और काल चेतनासे शून्य होने के कारण न किसीको प्रकाशित करते हैं और न कोई पदार्थ इनमें प्रकाशित होता है। उपर्युक्त पाँच अचेतन पदार्थों के सिवाय विश्व में एक चेतन द्रव्य भी है। यह चेतन द्रव्य चेतनासे तन्मय होने के कारण संसारके पदार्थों को प्रतिभासित करता है और संसार के पदार्थ इसमें प्रतिभासित होते है, हे सम्भवनाथ जिनेन्द्र! आप उपर्युक्त चेतन अचेतन पदार्थों को प्रतिभासित करते है और स्वयं भी प्रतिभासित होते हैं। इस तरह आप विश्व को प्रतिभासित करते है। [स्तुति-१,श्लोक-३, पृष्ठ-२] [ ] भावार्थ- भगवान अनंत जिनेन्द्र, वीतराग विज्ञानरुप केवलज्ञानको धारण करते हैं उनका यह केवलज्ञान, ज्ञान पर्यायकी अपेक्षा यद्यपि एक है, अद्वैतरुप है, तथापि उसमें प्रतिभासित होनेवाले नाना पदार्थों की अपेक्षा वह द्वैतरुप भी है। [स्तुति-१, श्लोक-१४ , पृष्ठ-९] भावार्थ- अपनी स्वच्छताके कारण चेतना गुणमें लोक अलोकके अनन्त पदार्थ प्रतिबिम्बित होते हैं अर्थात् आत्माके ज्ञायक स्वभावके कारण वे ज्ञेय बनकर आते हैं। उन अनन्त ज्ञेयोकी अपेक्षा जब विचार होता है तब वे ज्ञान दर्शन अनन्तरुप प्रतीत होते हैं परन्तु जब सामान्य चेतना गुणकी अपेक्षा विचार होता है तब एकरुप प्रतीत होता हैं। [स्तुति-२, श्लोक-१, पृष्ठ-१८] [.] भावार्थ- यद्यपि आपका सामान्य ज्ञान, केवलज्ञान नामक विशिष्ट ज्ञानरुप परिणत हो रहा है और उसकी स्वच्छताके कारण उसमें अनन्त ज्ञेय प्रतिबिम्बित हो रहे हैं फिर भी उन ज्ञेयोंसे समुत्पन्न कोई व्यग्रता आपमें नहीं है। __ [स्तुति-२, श्लोक-२१, पृष्ठ-२९] भावार्थ- उन सभी शक्तियोंमे ज्ञातृत्वशक्ति प्रमुख शक्ति है, क्योंकि इस शक्तिसे प्रगट हुआ ज्ञान स्वपरावभासी होने से अपने आपको तथा साथ ही विद्यमान अन्य शक्तियोंको प्रगट करता है। इस ज्ञातृत्व शक्तिका पूर्ण विकास होते ही अन्य सभी शक्तियोंका पूर्ण विकास हो जाता है। केवलज्ञान होने पर होता है। उस केवलज्ञानके समय समस्त विश्व आत्मामें अन्तः प्रतिफलित होने लगता है। आपका यह केवलज्ञान अपने चैतन्य चमत्कारसे समस्त विश्वकी आरती करता हुआ-सा प्रतित हो रहा है। [स्तुति-२,श्लोक-२२, पृष्ठ-२९]
SR No.008263
Book TitleMangal gyan darpan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhnaben J Shah
PublisherDigambar Jain Kundamrut Kahan
Publication Year2005
Total Pages469
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Education, & Religion
File Size3 MB
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