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________________ ૨૦ મંગલ જ્ઞાન દર્પણ ભાગ-૧ अलौकिक समुद्र उद्वेलित हो उठता है, जिसके अन्दर तीन लोक के अनन्तानन्त पदार्थ एक बूंद के समान प्रतिभासित होते हैं।..... [आस्रव अधिकार , गाथा-१२, पंक्ति-२२, पृष्ठ-१४८] [] भावार्थ- प्रत्येक आत्मा अनादित: संसारी है। कर्मबन्धन से बध्ध है। इसका एक मात्र कारण अज्ञान है अथात् आत्मा और कर्म में एकत्वबुद्धि है। दोनों स्वभाव से भिन्न है ऐसा अज्ञान के कारण प्रतिभासित नहीं होता। यही अज्ञान संसार बन्धका मूल हेतु है। [संवराधिकार , गाथा-७, पंक्ति -१४ , पृष्ठ-१५६ ] [.] ......किन्तु इसका अभिप्राय यह है कि ज्ञान ज्ञानरूप में रहकर ही ज्ञेयों को जानता है ओर ज्ञेय भी ज्ञेयरूप रहकर ही ज्ञानमें प्रतिभासित होता हैं दर्पण की तरह। जैसे दर्पण अपने अस्तित्व को कायम रखता हुआ ही स्वच्छता से अपने में प्रतिबिम्बित पदार्थों को अपनी पृथकता के साथ ही पदार्थों की पृथकता को प्रगट करता हुआ ही प्रगट करता है। वैसे ही ज्ञान भी अपने द्रव्य क्षेत्र काल और भाव में रहता हुआ ही पर पदार्थों को द्रव्य क्षेत्र काल और भावको पृथक रखता हुआ ही उन्हें जानता है उनके स्वरूपमय होकर नहीं। [ गाथा-५६ , पंक्ति -२४, पृष्ठ-३१७ ] [ ] भावार्थ- एकान्ती – हठधर्मी ज्ञान को एकमात्र चैतन्याकार ही मानता है अन्य ज्ञेयों के आकारो को ज्ञानमें मलिनता मान उन्हें दूर करने की बलवती इच्छा से ज्ञान को ही नष्ट कर देता है। क्योंकि ज्ञान स्वभावतः ज्ञेयाकार परिणमनरूप है और वह उसे उन परिणमनों से युक्त देखना नहीं चाहता है। एसी स्थिति में ज्ञान की अवस्थिति ही नहीं बन सकती तब ज्ञान का नाश ही समझा जायेगा। किन्तु अनेकान्ती अनेक धर्म स्वरूप वस्तु को अङ्गीकार करनेवाला विवेकी कहता है कि ज्ञानका स्वभाव ही ज्ञेयों को जाननेका है और वह जानना भी ज्ञान में ज्ञेयोंका आकाररूप परिणमन ही है जो पर्यायरूप है। अत: पर्यायार्थिक नयकी विवक्षा से ज्ञान अनेकाकार रूप भी है तथा द्रव्यार्थिक विविक्षा से एकाकार -चैतन्याकार भी है क्योंकि वह चैतन्याकार एकमात्र ज्ञानरूप ही है, अन्य पदार्थरूप नहीं। इस तरह से ज्ञान एक भी है और अनेक भी है यह विवक्षा की प्रमुखता पर आधारित है, जिसे अज्ञानी समझता ही नहीं है। [ गाथा-५८, पंक्ति -२०, पृष्ठ-३२१]
SR No.008263
Book TitleMangal gyan darpan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhnaben J Shah
PublisherDigambar Jain Kundamrut Kahan
Publication Year2005
Total Pages469
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Education, & Religion
File Size3 MB
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