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________________ ૫૩૬ કલશામૃત ભાગ-૪ નિરાસ્રવી જીવોનો આનંદ ( સવૈયા એકત્રીસા) जे केई निकटभव्यरासी जगवासी जीव, मिथ्यामतभेदि ग्यान भाव परिनए हैं। जिन्हिकी सुदृष्टि मैं न राग द्वेष मोह कहूं, विमल विलोकनिमैं तीनौं जीति लए हैं ।। तजि परमाद घट सोधि जे निरोधि जोग, सुद्ध उपयोगकी दसामैं मिलि गए हैं। तेई बंधपद्धति विदारि परसंग डारि, आपमैं भगत ह्वैकै आपरूप भए हैं ।। ११ ।। ( ऽलश-११-१०७ ) ઉપશમ અને ક્ષયોપશમભાવોની અસ્થિરતા. (સવૈયા એકત્રીસા ) जेते जीव पंडित खयोपसमी उपसमी, तिन्हकी अवस्था ज्यौं लुहारकी संडासी है। खिन आगमांहि खिन पानीमांहि तैसैं एऊ, खिनमैं मिथ्यात खिन ग्यानकला भासी है ।। जौलौं ग्यान रहें तौलौं सिथिल चरन मोह, जैसैं कीले नागकी सकति गति नासी है। आवत मिथ्यात तब नानारूप बंध करै, ज्यौं उकीलै नागकी सकति परगासी है ।। १२ ।। ( ऽलश-१२-१०८ ) અશુદ્ધનયથી બંધ અને શુદ્ધનયથી મોક્ષ છે. (દોહરા ) यह निचोर या ग्रंथकौ, यहै परम रसपोख । तजै सुद्धनय बंध है, गहै सुद्धनय मोख ।। १३ ।। ( Sलश-१३-१०९)
SR No.008259
Book TitleKalashamrut Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages572
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Spiritual, & Discourse
File Size2 MB
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