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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
परिणामरूप उसका स्वभाव होने से वह केवल एक गंधवेदना - परिणाम को प्राप्त होकर गंध नहीं सूंघता इसलिए अगंध है ।। ९७ ।।
(श्री समयसार जी, गाथा ४९ की टीका में से बोल ३,४,५ )
* (१) परमार्थ से पुद्गल द्रव्य का स्वामीपना भी उसे नहीं होने से वह द्रव्येन्द्रिय के आलम्बन द्वारा भी स्पर्श को नहीं स्पर्शता इसलिए अस्पर्श है।
(२) अपने स्वभाव की दृष्टि से देखने में आवे तो क्षायोपशमिक भाव का भी उसे अभाव होने से वह भावेन्द्रिय के आलम्बन द्वारा भी स्पर्श को नहीं स्पर्शता इसलिए अस्पर्श है।
(३) सकल विषयों के विशेषों में साधारण ऐसे एक ही संवेदन परिणामरूप उसका स्वभाव होने से वह केवल एक स्पर्शवेदना परिणाम को प्राप्त होकर स्पर्श को नहीं स्पर्शता अतः अस्पर्श है । । ९८ ।।
(श्री समयसार जी गाथा ४९ की टीका में से बोल नं. ३,४,५ ) * (१) परमार्थ से पुद्गल द्रव्य का स्वामीपना भी उसे नहीं होने से वह द्रव्येन्द्रिय के आलम्बन द्वारा भी शब्द नहीं सुनता अतः अशब्द है।
(२) अपने स्वभाव की दृष्टि से देखने में आवे तो क्षायोपशमिक भाव का भी उसे अभाव होने से वह भावेन्द्रिय के आलम्बन द्वारा शब्द नहीं सुनता अतः अशब्द है।
(३) सकल विषयों के विशेषों में साधारण ऐसे एक ही संवेदन परिणामरूप उसका स्वभाव होने से वह केवल एक शब्दवेदना परिणाम को प्राप्त होकर भी शब्द नहीं सुनता अतः अशब्द है ।। ९९ ।।
(श्री समयसार जी गाथा ४९ की टीका में से ३,४,५ बोल ) छह द्रव्य स्वरूप लोक जो ज्ञेय है और व्यक्त है उससे जीव अन्य है
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'इन्द्रियज्ञान विभाव है इसलिये उसका निषेध कराया है*
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