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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है है वह गाथा २७८ से ३०६ तक में बताया है।।१।। (श्री पंचाध्यायी, उत्तरार्ध, गाथा २८५ का भावार्थ गुजराती में से) * इन्द्रियजन्य ज्ञान की दुर्बलता वह इन्द्रियज्ञान छह द्रव्यों में से केवल मूर्त द्रव्य को ही विषय करता है, अन्य द्रव्यों को नहीं; तथा मूर्त द्रव्य में भी वह सूक्ष्म पुद्गलों को विषय नहीं करता है किन्तु केवल स्थूल पुद्गलों को ही विषय करता है। और स्थूल पुद्गलों में भी सब स्थूल पुद्गलों को विषय नहीं करता है किन्तु किन्हीं-किन्हीं स्थूल पुदगलों को ही विषय करता है। तथा उन स्थूल पुद्गलों में भी इन्द्रियों के द्वारा ग्राह्य पुद्गलों को ही वह विषय करता है अग्राह्यों को नहीं। तथा उन ग्राह्य पुद्गलों में भी वर्तमान काल सम्बन्धी पुदगलों को ही विषय करता है, अतीत अनागत काल सम्बन्धी नहीं। और उन वर्तमान काल सम्बन्धी पुद्गलों मे भी जिनका सन्निधानपूर्वक इन्द्रियों के साथ सन्निकर्ष होता है उनको ही विषय करता है, अन्य को नहीं, तथा उनमें भी अवग्रह, ईहा अवाय और धारण के होने पर ही उनको अवग्रहादिक रूप से वह विषय करता है! और इन सब कारणों के रहने पर भी वह इन्द्रियज्ञान कदाचित् होता है, सदैव नहीं। तथा सामग्री के पूर्ण न होने पर तो वह बिलकुल नहीं होता है। इसलिए वह इन्द्रियज्ञान दिग्मात्र (अर्थात् दिखावा मात्र) है। (श्री प्रवचनसार गाथा ४२ की टीका में तो ऐसे ज्ञान को “ज्ञानमेव नास्तिज्ञान ही नहीं है” ऐसा जयसेनाचार्य ने कहा है।)।।५२।।। (श्री पंचाध्यायी, उत्तरार्ध, गाथा २८६ से २८९ का भावार्थ गुजराती में से) * इसलिए प्रकृत अर्थ यही है कि इन्द्रियजन्य ज्ञान दिड् मात्र है अर्थात् २२ * इन्द्रियज्ञान ज्ञेय का मात्र है Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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