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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
* ज्ञान के क्षयोपशम का वजन नहीं परन्तु अनुभूति का वज़न है इसलिये कहते हैं कि आत्मा के अनुलक्ष्य से आत्मा को स्वाद का अनुभव होना ये अनुभूति है और बारह अंग में भी अनुभूति का वर्णन किया है - अनुभूति करने के लिये कहा है । अनाकुल ज्ञान और अनाकुल आनन्द का अनुभव करना ऐसा बारह अंग में कहा है। शुद्ध आत्मा की दृष्टि करके स्थिरता करना ऐसा उसमें कहा है। बारह अंग से ज्यादा श्रुत ज्ञान नहीं होता। उसमें चारों अनुयोग का ज्ञान आ जाता है - ऐसे उत्कृष्ट बारह अंग का ज्ञान वह मोक्षमार्ग नहीं है। बारह अंग वाले को सम्यग्दर्शन होता ही है- सम्यग्दर्शन बिना बारह अंग का ज्ञान होता ही नहीं है। लेकिन वह क्षयोपशम ज्ञान, मोक्षमार्ग नहीं है परन्तु अनुभूति वह मोक्षमार्ग है। इतना ज्यादा उघाड़ हुआ इसलिये मोक्षमार्ग बढ़ गया ऐसा नहीं है । । ४७२ ।।
(श्री परमागमसार, पृष्ठ २६, बोल ७९ )
* प्रश्न : ज्ञान का स्वभाव जानने का ही है तो अपने (आत्मा) को क्यों नहीं जानता ?
उत्तर : इसका स्वभाव अपने को जानने का है परन्तु अज्ञानी की दृष्टि पर ऊपर है। इसलिये स्वयं जानने में नहीं आता। पर में कहीं ना कहीं अधिकता पड़ी है इसलिये दूसरे को अपने से अधिक मानता होने से स्वयं ( आत्मा ) जानने में नहीं आता। अधिकपने का इसका वजन पर में जाता है इसलिये आत्मा जानने में नहीं आता ।। ४७३ ।।
(श्री परमागमसार, पृष्ठ ३०, बोल ९९ )
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१२ अंग के ज्ञान के भी स्थूल ज्ञान कहा है कि जो बारह अंग का ज्ञान लिखने पर भी लिख नहीं सकते, पढ़ने पर भी पढ़ नहीं सकते।
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* मैं नाक से सूंघता हूँ - यह मान्यता मिथ्या है *
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