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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
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ज्ञान का आविर्भाव व विशेष ज्ञान का तिरोभाव कहते है । यह पर्याय की बात है। ज्ञान की पर्याय में अकेले ज्ञान - ज्ञान - ज्ञान का वेदन होना और शुभाशुभ ज्ञेयाकार ज्ञान का ढँक जाना - उसे सामान्य ज्ञान का आविर्भाव और विशेष ज्ञान का तिरोभाव कहते हैं । और इस प्रकार ज्ञानमात्र का अनुभव करने में आते ही ज्ञान आनन्दसहित पर्याय में अनुभव में आता है। यहाँ सामान्य ज्ञान का आविर्भाव ” अर्थात् त्रिकाली -भाव का आविर्भाव - यह बात नहीं है। सामान्य ज्ञान अर्थात् शुभाशुभ ज्ञेयाकार रहित अकेले ज्ञान का पर्याय में प्रगटपना । अकेले ज्ञान-ज्ञान–ज्ञान का अनुभव - यह सामान्य ज्ञान का आविर्भाव है। ज्ञेयाकार रहित अकेला प्रगटज्ञान वह सामान्य ज्ञान है। इसका विषय त्रिकाली है ।।४५४ ।।
( श्री प्रवचनरत्नाकर, भाग १, पैरा १, पृष्ठ २६२ ) * तो भी जो अज्ञानी हैं-ज्ञेयों में आसक्त हैं, उनको वह स्वाद में नहीं आता है। चैतन्यस्वरूप निज परमात्मा की जिनको रुचि नहीं है, ऐसे अज्ञानी जीव-राग कि जो पर ज्ञेय है ( राग वह ज्ञान नहीं है) उसमें आसक्त हैं व्रत, तप, दया, दान, पूजा, भक्ति ऐसा जो व्यवहार रत्नत्रय का परिणाम है उसमें जो आसक्त हैं, शुभाशुभ विकल्पों को जानने में जो रुक गये हैं; ऐसे ज्ञेयलुब्ध जीवों को आत्मा के अतीन्द्रिय ज्ञान और आनन्द का स्वाद नहीं आता । शुभराग की - पुण्यभाव की जिनको रुचि है उनको आत्मा के आनन्द का स्वाद नहीं आता । ।४५५।।
(श्री प्रवचनरत्नाकर, भाग १, पैरा ३, पृष्ठ २६२ ) * आत्मा का स्वाद तो अनाकुल आनन्दमय है। बनारसीदास जी ने लिखा है :
वस्तु विचारत ध्यावतैं, मन पावे विश्राम।
रस स्वादत सुख उपजे, अनुभौ ताको नाम ।।
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* इन्द्रियज्ञान बढ़ा अर्थात् ज्ञेय बढ़ा *
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