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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
सम्पूर्ण वस्तु गायब हो गई है। पर भाई ! तुझे यह अवसर मिला है, यदि फुरसत निकालकर यह बात न समझा तो तू कौवे - कुत्ते आदि के भव मे तिर्यंच योनि में कहीं खो जायेगा।
अहाहा! ज्ञेय-ज्ञान- ज्ञाता ऐसे तीन भेद मेरा स्वरूप मात्र है। अर्थात् तीनों रूप एक ही वस्तु मैं हूँ । परज्ञेय से क्या काम है ? पर ज्ञेय के साथ मुझे कुछ सम्बन्ध नहीं है। भाई ! तुझे ऐसा निर्णय करना पड़ेगा हों ! यह आखरी कलश है न! इसलिए यहाँ एकदम अभेद की बात कही है ! भाई ! यह तो सम्पूर्ण शास्त्र का सार अर्थात् निचोड़ है। निचोड़ !
भाई! ये जो अनन्त ज्ञेय हैं, उन्हें जानने की शक्ति तेरी है या ज्ञेय की है ? जानने की शक्ति तेरी है, तो इसमें परज्ञेय कहाँ आया ? यह तो बापू अपनी ज्ञान की शक्ति में पर ज्ञेय का ज्ञान अपने ही कारण से अपना ज्ञेय होकर आया है। अहा ! अपना ज्ञान ही अपना ज्ञेय होकर अपने को जानता है तथा अनन्त शक्ति का पिण्ड - ज्ञाता भी वह स्वयं ही है। इस प्रकार तीनों मिलकर वस्तु तो एक ही है। देखो, भाषा ऐसी ली है न कि, ज्ञान ज्ञेय ज्ञातृ मद्वस्तुमात्र: " अर्थात् तीन भेद स्वरूप वस्तुमात्र मैं हूँ, उसमें ही मेरा सर्वस्व है। ऐसा वस्तुस्वरूप है और यह भगवान की वाणी में आया है।
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यहाँ का विरोध करने के लिए कितने ही पण्डित कहते हैं कि जो एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य का कर्ता न माने वह दिगंबर जैन नहीं है। लेकिन भगवान! इसमें तो तेरा स्वयं का ही विरोध होता है। भाई ! तुझे खबर नहीं, पर इसमें तेरा बड़ा नुकसान है। ऐसे ( तत्व विरोध के ) परिणाम का फल बहुत बुरा है भाई ! तूने अनन्तकाल से जो घोर दुःख सहे वह ऐसे ही परिणाम का फल है। तू दुःखी हो, क्या यह अच्छा है ? (इसलिए तत्वदृष्टि कर । )
अज्ञानी कहते हैं कि जो परद्रव्य का कर्ता न माने, वह दिगंबर जैन
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* पर को जाने ऐसा ज्ञायक का स्वरूप नहीं है*
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