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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है सम्यग्दर्शन का विषय नहीं है। अहा! सम्यग्दर्शन और उसका विषय ऐसी परम अद्भूत अलौकिक वस्तु है। यहाँ कहते है-परद्रव्य ज्ञेय और भगवान आत्मा ज्ञायक-ऐसा ज्ञेयज्ञायक सम्बन्ध है-ऐसी भ्रांति है अर्थात् ऐसा वास्तविक ज्ञेयज्ञायक सम्बन्ध है नहीं। वास्तव में तो ज्ञान-जानपनेरूप शक्ति, ज्ञेय-जो जानने में आवे वह, और ज्ञाता-अनन्त गुणों के पिंडरूप वस्तु-ये सब एक वस्तु है ऐसा कहते हैं। देखो, क्या कहते हैं ? कि - 'ज्ञेय ज्ञायक सम्बन्ध के विषय में बहुत भ्रांति चलती है, इसलिये कोई ऐसा समझेगा कि जीववस्तु ज्ञायक, पुद्गल से लेकर भिन्न रूप छह द्रव्य ज्ञेय हैं, परन्तु ऐसा तो नहीं है।' देखो, यहाँ छह द्रव्य कहे उसमें अनन्त केवली भगवान आ गये, अनन्त सिद्ध आ गये, पंच परमेष्ठी आ गये और अनन्त निगोद के जीवों सहित सर्व संसारी जीव आ गये। तो आत्मा ज्ञायक है, और अरहंतादि पंच परमेष्ठी और अन्य जीव उसका ज्ञेय है ऐसा है नहीं, ऐसा कहते हैं। गजब बात है भाई! यह तो ज्ञेय ज्ञायक का व्यवहार सम्बन्ध छुड़वाकर भेदज्ञान कराने की बात है। समझ में आता है कुछ...? सूक्ष्म बात है प्रभु! कहते हैं-जाननस्वभावी भगवान आत्मा ज्ञायक है और अनन्त केवली, सिद्ध और संसारी जीव उसका ज्ञेय है-ऐसा है नहीं। और जीववस्तु ज्ञायक है और एक परमाणु से लेकर अचेतन महास्कंध पर्यत के स्कंध और कर्म आदि उसका ज्ञेय है-ऐसा भी है नहीं। जैन तत्व बहुत सूक्ष्म है भाई! यह व्यवहार रत्नत्रय का राग होता है न धर्मात्मा को ? यहाँ कहते हैं-आत्मा ज्ञायक है और व्यवहार रत्नत्रय का राग उसका ज्ञेय है-ऐसा है नहीं। समयसार की १२वीं गाथा में कहा है कि व्यवहार ( राग) जाना हुआ प्रयोजनवान है, लेकिन १४७ * परमात्मा कहते हैं-हमारे लक्ष से दुर्गति होगी* Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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