SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है यह तो पहले कहा न कि-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव (चारों ही)उसका वही है! अर्थात् क्या ? कि द्रव्य भी वो ही है, क्षेत्र भी वो ही है, काल भी वो ही है और भाव भी वो ही है; परंतु द्रव्य भिन्न है, क्षेत्र भिन्न है, काल भिन्न है और भाव भिन्न है-ऐसा नहीं है। __ अहाहा! अनन्त गुण रूप जो वस्तु-द्रव्य है वो द्रव्य ही असंख्य प्रदेशी क्षेत्र है, वो ही त्रिकाल (काल) है और वो ही भाव है। आम में स्पर्श-रसगंध-वर्ण (आम से) अलग हैं ऐसा नहीं है, परन्तु स्पर्श कहो तो भी वो ही है, रस कहो तो भी वो ही है, गंध कहो तो भी वो ही है और वर्ण कहो तो भी वो ही है। वैसे ही अनन्तगुण के पिंडस्वरूप शुद्ध चैतन्य स्वरूप आत्मा का जो द्रव्य है वो ही असंख्यप्रदेशी क्षेत्र है। अहाहा! जो द्रव्य है वो ही असंख्यप्रदेशी क्षेत्र है, और जो असंख्यप्रदेशी क्षेत्र है वो ही द्रव्य है। और जो असंख्यप्रदेशी क्षेत्र है वो ही त्रिकाल (काल) है और जो त्रिकाल है वो ही भाव है। इस प्रकार चारों का-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का भेद निकालकर निश्चय से सब अभेद है ऐसा वस्तु का वास्तविक स्वरूप कहा। समझ में आया कुछ ? बहुत सूक्ष्म , लेकिन सत्य तो सूक्ष्म ही होता है न? अहाहा! दृष्टि का विषय तो द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का एकरूप ऐसा चित्स्वभाव है दृष्टि के विषय में चार भेद नहीं है। द्रव्य है वो ही परमपारिणामिक भाव है, क्षेत्र है वो ही परम पारिणामिक भाव है, त्रिकाल वस्तु है वो ही परम पारिणामिक भाव है और अनन्त स्वभावभाव है वो भी परम पारिणामिक भाव है; इसलिये वे चारों एक ही वस्तु है, लेकिन वे चार शुद्ध चित्स्वरूप से भिन्न-भिन्न वस्तु हैं-ऐसा नहीं है। अहा! ऐसी अभेद एक शुद्ध चैतन्यमात्र वस्तु है वो ही सम्यग्दर्शन का विषय है। भाई! बाह्य निमित्त तो सम्यग्दर्शन का विषय नहीं है, व्यवहार का राग भी नहीं और एक समय की प्रकट हुई निर्मल निर्विकारी पर्याय भी १४६ *यदि ज्ञान का स्वभाव पर को जानने का होवे तो उसमे आनन्द होना चाहिये Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy