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इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
रे! धर्म नहिं है ज्ञान, क्योंकि धर्म कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु धर्म अन्य-जिनवर कहे।।३९८ ।।
धर्म ( अर्थात् धर्मास्तिकाय) ज्ञान नहीं है क्योंकि धर्म कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है धर्म अन्य है-ऐसा जिनवर कहते हैं।।२४८।।
(श्री समयसार जी गाथा ३९८) णाणमधम्मो ण हवदि जम्हाधम्मो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णमधम्मं जिणा बेंति।।३९९ ।। नहिं है अधर्म जु ज्ञान, क्योंकि अकर्म कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु अधर्म अन्य-जिनवर कहे।।३९९ ।।
अधर्म (अर्थात् अधर्मास्तिकाय) ज्ञान नहीं है क्योंकि अधर्म कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है अधर्म अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४९ ।।
(श्री समयसार जी गाथा ३९९) कालो णाणं ण हवदि जम्हा कालो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णं कालं जिणा बेति।।४००।। रे! काल है नहिं ज्ञान , क्योंकि काल कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु काल अन्य-प्रभू कहे।।४००।।
काल ज्ञान नहीं है क्योंकि काल कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है काल अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२५० ।।
(श्री समयसार जी गाथा ४००)
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* इन्द्रियज्ञान वैभाविक है
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