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इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
रे! रस नहिं है ज्ञान, क्योंकि रस जु कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु अन्य रस -जिनवर कहे।।३९५ ।।
रस ज्ञान नहीं है क्योंकि रस कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है और रस अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४५।।
(श्री समयसार जी गाथा ३९५)
* फासो ण हवदि णाणं जम्हा फासो ण याणदे किंचि।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं फासं जिणा बैंति।।३९६ ।। रे! स्पर्श है नहिं ज्ञान, क्योंकि स्पर्श कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु स्पर्श अन्य-प्रभू कहे ।।३९६ ।।
स्पर्श ज्ञान नहीं है क्योंकि स्पर्श कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है, स्पर्श अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४६ ।।
( श्री समयसार जी गाथा ३९६) * कम्मं णाणं ण हवदि जम्हा कम्मं ण याणदे किंचि।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं कम्मं जिणा बेंति।।३९७।। रे! कर्म है नहिं ज्ञान , क्योंकि कर्म कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु कर्म अन्य-जिनवर कहे।।३९७।।
कर्म ज्ञान नहीं है क्योंकि कर्म कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है, कर्म अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४७।।
(श्री समयसार जी गाथा ३९७) * धम्मो णाणं ण हवदि जम्हा धम्मो ण याणदे किंचि।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं धम्मं जिणा बेंति।।३९८ ।।
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* इन्द्रियज्ञान जिसको जाने उसको अपना मानता है*
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