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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है रे! रस नहिं है ज्ञान, क्योंकि रस जु कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु अन्य रस -जिनवर कहे।।३९५ ।। रस ज्ञान नहीं है क्योंकि रस कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है और रस अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४५।। (श्री समयसार जी गाथा ३९५) * फासो ण हवदि णाणं जम्हा फासो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णं फासं जिणा बैंति।।३९६ ।। रे! स्पर्श है नहिं ज्ञान, क्योंकि स्पर्श कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु स्पर्श अन्य-प्रभू कहे ।।३९६ ।। स्पर्श ज्ञान नहीं है क्योंकि स्पर्श कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है, स्पर्श अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४६ ।। ( श्री समयसार जी गाथा ३९६) * कम्मं णाणं ण हवदि जम्हा कम्मं ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णं कम्मं जिणा बेंति।।३९७।। रे! कर्म है नहिं ज्ञान , क्योंकि कर्म कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु कर्म अन्य-जिनवर कहे।।३९७।। कर्म ज्ञान नहीं है क्योंकि कर्म कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है, कर्म अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४७।। (श्री समयसार जी गाथा ३९७) * धम्मो णाणं ण हवदि जम्हा धम्मो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णं धम्मं जिणा बेंति।।३९८ ।। १०७ * इन्द्रियज्ञान जिसको जाने उसको अपना मानता है* Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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