________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
रे! रूप है नहिं ज्ञान, क्योंकि रूप कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु रूप अन्य प्रभू कहे ।।३९२।।
रूप ज्ञान नहीं है, क्योंकि रूप कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है, रूप अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४२।।।
(श्री समयसार जी गाथा ३९२)
* वण्णो णाणं ण हवदि जम्हा वण्णो ण याणदे किंचि।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं वण्णं जिणा बेति।।३९३।। रे! वर्ण है नहिं ज्ञान, क्योंकि वर्ण कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु वर्ण अन्य-प्रभू कहे।।३९३ ।। वर्ण ज्ञान नहीं है क्योंकि वर्ण कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है, वर्ण अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं ।।२४३।।
(श्री समयसार जी गाथा ३९३) * गंधो णाणं ण हवदि जम्हा गंधो ण याणदे किंचि।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं गंधं जिणा बेति।।३९४ ।। रे! गंध है नहिं ज्ञान , क्योंकि गंध कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु शब्द अन्य प्रभू कहे।।३९४ ।।
गंध ज्ञान नहीं है क्योंकि गंध कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है, गंध अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४४ ।।
(श्री समयसार जी गाथा ३९४ ) * ण रसो दु हवदि णाणं जम्हा दु रसो ण याणदे किंचि।
तम्हा अण्णं णाणं रसं व अण्णं जिणा बेंति।।३९५ ।।
१०६
* इन्द्रियज्ञान अरूपी ऐसी आत्मा को जानता नहीं है?
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com