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इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
गच्छति ] उपशम को प्राप्त नहीं होता; [ च ] और [ शिवाम् बुद्धि अप्राप्तः च स्वयं] शिव बुद्धि को (कल्याणकारी बुद्धि को, सम्यग्ज्ञान को) न प्राप्त हुआ स्वयं [ परस्य विनिर्ग्रहमना: ] पर को ग्रहण करने का मन करता है।।२३९ ।।
(श्री कुंदकुंदाचार्य, श्री समयसार जी गाथा ३८० से ३८२) * सत्थं णाणं ण हवदि जम्हा सत्थं ण याणदे किंचि।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सत्थं जिणा बॅति।।३९०।। रे! शास्त्र है नहिं ज्ञान क्योंकि शास्त्र कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु शास्त्र-अन्य प्रभू कहे।।३९०।।
शास्त्र ज्ञान नहीं है क्योंकि शास्त्र कुछ जानता नहीं है ( –वह जड़ है) इसलिये ज्ञान अन्य है, शास्त्र अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।२४०।।
(श्री समयसार जी गाथा ३९०) * सद्दो णाणं ण हवदि जम्हा सद्दो ण याणदे किंचि।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सदं जिणा बेति।।३९१ ।। रे! शब्द है नहिं ज्ञान, क्योंकि शब्द कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु शब्द अन्य-प्रभू कहे।।३९१ ।।
शब्द ज्ञान नहीं है क्योंकि शब्द कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है, शब्द अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४१।।
(श्री समयसार जी गाथा ३९१) * रूवं णाणं ण हवदि जम्हा रूवं ण याणदे किंचि।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं रूवं जिणा बेंति।।३९२।।
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* इन्द्रियज्ञान ज्ञेय बदलता रहता है*
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