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इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
असुहो सुहो व गुणो ण तं भणदि बुज्झ मं ति सो चेव। ण य एदि विणिग्गहिदुं बुद्धिविसयमागदं तु गुणं ।।३८०।। असुहं सुहं व दव्वं ण तं भणदि बुज्झ मं ति सो चेव। ण य एदि विणिग्गहिदुं बुद्धिविसयमागदं दव्वं ।।३८१।। एयं तु जाणिऊणं उवसमं णेव गच्छदे मूढो। णिग्गहमणा परस्स य सयं च बुद्धिं सिवमपत्तो।।३८२।। शुभ या अशुभ गुण कोई भी 'तू जान मुझको' नहीं कहे। अरु जीव भी नहिं ग्रहण जावे बुद्धिगोचर गुण अरे।।३८०।। शुभ या अशुभ जो द्रव्य वो 'तू जान मुझको' नहीं कहे। अरु जीव भी नहिं ग्रहण जावे बुद्धिगोचर द्रव्य रे।।३८१।। यह जानकर भी मूढ जीव पावे नहिं उपशम अरे! शिव बुद्धि को पाया नहीं वो पर ग्रहण करना चहे।।३८२।।
[ अशुभः वा शुभः गुणः ] अशुभ अथवा शुभ गुण [ त्वां न भणति] तुझसे यह नहीं कहता कि [ माम् बुध्यस्व इति] 'तू मुझे जान'; [ सः एव च ] और आत्मा भी ( अपने स्थान से च्युत होकर), [ बुद्धिविषयम् आगतं तू गुणम् ] बुद्धि के विषय में आये हुए गुण को, [विनिर्ग्रहीतुं न एति ] ग्रहण करने नहीं जाता।
[ अशुभं वा शुभं द्रव्यं] अशुभ अथवा शुभ द्रव्य [ त्वां न भणति] तुझसे यह नहीं कहता कि [ माम् बुध्यस्व इति] 'तू मुझे जान'; [ सः एव च ] और आत्मा भी ( अपने स्थान से च्युत होकर), [ बुद्धिविषयम् आगतं द्रव्यम् ] बुद्धि के विषय में आये हुए द्रव्य को, [विनिर्ग्रहीतुं न एति ] ग्रहण करने नहीं जाता।
[ एतत् तु ज्ञात्वा ] ऐसा जानकर भी [ मूढः ] मूढ जीव [ उपशमं न एव
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* इन्द्रियज्ञान ज्ञेय का क्षयोपशम है*
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