________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
शुभ या अशुभ जो शब्द वो ' तू सुन मुझे ' न तुझे कहे। अरु जीव भी नहिं ग्रहण जावे कर्णगोचर शब्द को । । ३७५ ।।
[ अशुभः वा शुभः शब्दः ] अशुभ अथवा शुभ शब्द [ त्वां न भणति ] तुझसे यह नहीं कहता कि [ माम् श्रृणु इति ] 'तू मुझे सुन'; [ सः एव च] और आत्मा भी ( अपने स्थान से च्युत होकर ), [ श्रोत्रविषयम् आगतं शब्दम्] श्रोत्र - इन्द्रिय के विषय में आये हुए शब्द को [ विनिर्ग्रहीतुं न एति ] ग्रहण करने को - जानने को) नहीं
(
जाता।।२३६ ।।
(श्री समयसार जी, श्री कुंदकुंदाचार्य, गाथा ३७५ )
* असुहं सुहं व रूवं ण तं भणदि पेच्छ मं ति सो चेव ।
णय एदि विणिग्गहिंदुं चक्खुविसयमागदं रूवं ।।३७६ ।। अहो सुहो व गंधो ण तं भणदि जिग्ध मं ति सो चेव । ण य एदि विणिग्गहिंदुं घाणविसयमागदं गंधं ।।३७७।। असुहो सुहो व रसो ण तं भणदि रसय मं ति सो चेव । ण य एदि विणिग्गहिदुं रसणविसयमागदं तु रसं ।।३७८।।
शुभ या अशुभ जो रूप वो ' तू देख मुझको ' नहिं कहे। अरु जीव भी नहिं ग्रहण जावे चक्षुगोचर रूप को ।। ३७६ ।।
शुभ या अशुभ जो गंध वो 'तू सूंघ मुझको ' नहिं कहे। अरु जीव भी नहिं ग्रहण जावे घ्राणगोचर गंध को।।३७७।। शुभ या अशुभ रस कोई भी, 'तू चाख मुझको ' नहिं कहे। अरु जीव भी नहिं ग्रहण जावे रसनगोचर स्वाद को ।। ३७८ ।।
[ अशुभं वा शुभं रूपं ] अशुभ अथवा शुभ रूप [त्वां न भणति ] तुझसे यह नहीं कहता कि [ माम् पश्य इति ] ' तू मुझे देख '; [ सः एव च ] और
१०२
'इन्द्रियज्ञान वह आत्मा को जानने का साधन नहीं है*
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com