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इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
( अविकाराः राग-द्वेष रहित (स्युः) हैं। किनसे निर्विकार हैं ? " प्रतिफलननिमग्नानन्तभावस्वभावैः” (प्रतिफलन) प्रतिबिम्बरूप से (निमग्न) गर्भित जो (अनन्तभाव) सकल द्रव्यों के ( स्वभावैः) गुणपर्याय , उनसे निर्विकार हैं। भावार्थ इस प्रकार है-जो जीव के शुद्ध स्वरूप का अनुभव करता है उसके ज्ञान में सकल पदार्थ उद्दीप्त होते हैं, उसके भाव अर्थात् गुण-पर्याय, उनसे निर्विकाररूप अनुभव है।।१६०।। (श्री समयसार कलश टीका, कलश २१ टीका में से
__ पांडे राजमल जी)
* क्षायोपशमिक ज्ञान के विकल्प का स्वरूप
अन्वयार्थ :- (योग संक्रांतिः) मन वचन काय की प्रवृत्ति के परिवर्तन को ( विकल्पः) विकल्प कहते हैं, अर्थात् (ज्ञेयार्थात् ) एक ज्ञान के विषयभूत अर्थ से ( ज्ञेयार्थान्तर संगतः) दूसरे विषयान्तरत्व को प्राप्त हाने वाली (सः) जो (ज्ञेयाकारः) ज्ञेयाकाररूप (ज्ञानस्य पर्ययः) ज्ञान की पर्याय ( सः विकल्पः ) यह विकल्प कहलाता है।
भावार्थ :- मन वचन काय के अवलम्बन से विषय से विषयान्तररूप जो ज्ञान की प्रवृत्ति ( व्यापार ) होती है उसे विकल्प कहते हैं।।१६१।।।
(श्री पंचाध्यायी उत्तरार्थ गाथा ८३१)
* अन्वयार्थ :- वास्तव में इन्द्रियों के विषयों का अवलम्बन लेकर उत्पन्न होने वाली वह सविकल्प ज्ञान की पर्याय क्षायोपशमिक है, क्योंकि अतीन्द्रिय क्षायिक-केवलज्ञान में संक्रांति नहीं होती है। अतः उसमें योगावलम्बन से किसी प्रकार का परिवर्तन रूप विकल्प भी संभव नहीं है।
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*भिन्नाभावः नोद्रष्टाः
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