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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ધ્યેયપૂર્વક શેય भावों में से किस भाव के द्वारा मोक्ष होता है। सो वहाँ औपशमिक,क्षायोपशमिक, क्षायिक और औदयिक ऐसे चार भाव तो पर्यायरूप हैं और एक शुद्धपारिणामिक भाव द्रव्यरूप है। पदार्थ परस्पर अपेक्षा लिये द्रव्य-पर्याय रूप है। वहाँ जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व तीन प्रकार का पारिणामिक भाव है। उसमें भी शक्ति लक्षणरूप शुद्धजीवन-पारिणामिकभाव है, वही शुद्धद्रव्यार्थिकनय का आश्रय होने से निरावरण शुद्धपारिणामिकभाव है नाम जिसका ऐसा जानना चाहिये, जो कि बंध और मोक्षरूप पर्याय की परिणति से रहित है। और दशप्राणरूप जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व ये सब पर्यायार्थिकनय के आश्रय होने से अशुद्धपारिणामिक नाम वाले हैं। यहाँ प्रश्न होता है कि अशुद्धपारिणामिक क्यों हैं ? इसका उत्तर यह है कि दशप्राणरूप जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व इन तीनों का सिद्धों में तो सर्वथा अभाव है, किन्तु संसारी जीवों में भी शुद्धनिश्चयनय से अभाव है। वहाँ इन तीनों में से भव्यत्व लक्षणाला पारिणामिक भाव है उसका तो पर्यायार्थिकनय से मोहादिक कर्मसामान्य आच्छादक हैं जो देशघाती और सर्वघाती नाम वाला है एवं सम्यक्त्वादि जीव के गुणों का घातक है ऐसा समझना चाहिये। वहाँ जब काल आदि लब्धियों के वश से भव्यत्वशक्ति की अभिव्यक्ति होती है तब यह जीव सहज-शुद्धपारिणामिक भावरूपी लक्षण को रखने वाली ऐसे निज-परमात्मद्रव्य के सम्यकश्रद्धान, ज्ञान और आचरण की पर्याय के रूप में परिणमन करता है उसी ही परिणमन को आगम भाषा में औपशमिक,क्षायोपशमिक, और क्षायिकभाव इन तीनों नामों से कहा जाता है। वही अध्यात्मभाषा में शुद्धात्मा के अभिमुख परिणाम कहलाता है जिसको शुद्धोपयोग इत्यादि पर्यायरूप नाम से कहते हैं। वह शुद्धोपयोगरूप पर्याय भी शुद्धपारिणामिकभाव है लक्षण जिसका ऐसे शुद्धात्मद्रव्य से कथंचित् भिन्न रूप होती है क्योंकि वह भावनारूप होता है। किन्तु शुद्धपारिणामिक भाव भावनारूप नहीं होता है। यदि इस भावनारूप परिणाम को एकान्तरूप से शुद्धपारिणामिकभाव से अभिन्न ही मान लिया जाय तो मोक्ष का कारणभूत भावना रूप परिणाम का तो, मोक्ष हो जाने पर नाश हो जाता है तब उसके नाश हो जाने पर शुद्धपारिणामिकभाव का भी नाश हो जाना चाहिये ? सो ऐसा है नहीं। इसलिये यह निश्चित है कि शुद्धपारिणामिकभाव के विषय में जो भावना है उसरूप जो औपशमिकादि तीन भाव हैं सो रागादिक समस्त विकारभावों से रहित होने से शुद्ध-उपादान के कारणरूप हैं इसलिये मोक्ष के कारण होते हैं, किन्तु शुद्धपारिणामिकभाव मोक्ष का कारण नहीं हैं। हाँ, जो शक्तिरूप मोक्ष है वह तो शुद्धपारिणामिकरूप पहले से ही प्रवर्तमान है किन्तु यहाँ पर तो व्यक्तिरूप Please inform us of any errors on Rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008232
Book TitleDhyey purvak Gney
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages260
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Spiritual, & Discourse
File Size1 MB
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