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अध्यापक- नहीं! अभी तुम्हें बताया था कि नीलापन-पीलापन तो पुद्गल की
पर्याय है। आकाश तो अरूपी है, उसमें कोई रंग नहीं होता । जो सब द्रव्यों के रहने में निमित्त हो, वही आकाश है।
छात्र
- यह आकाश ऊपर है न ?
अध्यापक- यह तो सब जगह है, ऊपर-नीचे, अगल में, बगल में । दुनियाँ की
ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ आकाश न हो। सब द्रव्य आकाश में ही हैं।
छात्र – काल तो समय को ही कहते हैं या कुछ और बात है ? अध्यापक- काल का दूसरा नाम समय भी है, किन्तु काल – जीव, पुद्गल
की तरह एक द्रव्य भी है। उसमें जो प्रति समय अवस्था होती है उसका नाम समय है। यह काल द्रव्य जगत् के समस्त पदार्थों के
परिणमन में निमित्त मात्र होता है। छात्र - अच्छा तो ये द्रव्य हैं कुल कितने ?
अध्यापक- धर्म, अधर्म और आकाश तो एक एक ही हैं पर काल द्रव्य असंख्य हैं
तथा जीव द्रव्य तो अनन्त हैं एवं पुद्गल जीवों से भी अनन्त गुणे हैं
अर्थात् अनन्तानंत हैं। छात्र - इन द्रव्यों के अलावा और कुछ नहीं है दुनियाँ में ? अध्यापक- इनके अलावा कोई दुनियाँ ही नहीं है। छह द्रव्यों के समूह को
विश्व कहते हैं और विश्व को ही दुनियाँ कहते हैं।
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