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पिता – हम यह जान जावेंगें कि चारों गतियों में दुःख ही हैं, सुख नहीं और
चतुर्गति भ्रमण का कारण शुभाशुभ भाव है, इनसे छूटने का उपाय एक वीतराग भाव है। हमें वीतराग भाव प्राप्त करने के लिए ज्ञानस्वभावी आत्मा का आश्रय लेना चाहिये।
प्रश्न
१. गति किसे कहते है ? वे कितने प्रकार की होती हैं ? २. तिर्यंञ्चगति किसे कहते हैं ? ३. नरकगति के वातावरण का वर्णन कीजिये। ऐसे कौन से कारण हैं
जिनसे जीव नरकगति प्राप्त करता है ? ४. क्या देवगति में भी सुख नहीं है ? सकारण उत्तर दीजिये। ५. सबसे अच्छी गति कौनसी है ? युक्तिसंगत उत्तर दीजिये।
पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त-वाक्य
१. जीव की अवस्था-विशेष को गति कहते हैं। २. जीव कहीं से मरकर मनुष्य-शरीर धारण करता है, उसे मनुष्यगति
कहते हैं। ३. जीव कहीं से मरकर तिर्यंच-शरीर धारण करता है, उसे तिर्यंचगति
कहते हैं। ४. जीव कहीं से मरकर नारकी-शरीर धारण करता है, उसे नरकगति
कहते हैं। ५. जीव कहीं से मरकर देव-शरीर धारण करता है, उसे देवगति कहते हैं। ६. जीव अपनी आत्मा को पहिचान कर उसकी साधना द्वारा चर्तुगति के
दुःखों से छूटकर सिद्धपद पा लेता है, उसे पंचमगति कहते हैं। ७. एक वीतराग भाव ही पंच गति (मोक्ष) का कारण है। वीतराग भाव
प्राप्त करने के लिये ज्ञानस्वभावी आत्मा का आश्रय लेना चाहिये।
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