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पुत्र – मनुष्यगति को अच्छी कहो न ? क्योंकि इससे ही मोक्षपद मिलता है। पिता – यदी यह अच्छी होती तो सिद्ध जीव इसका भी परित्याग क्यों करते ?
अतः चतुर्गति का परिभ्रमण छोड़ना ही अच्छा है। पुत्र – जब इन गतियों का चक्कर छोड़ना ही अच्छा है तो फिर यह जीव
इन गतियों में घूमता ही क्यों है ? पिता – जब अपराध करेगा तो सजा भोगनी ही पड़ेगी। पुत्र – किस अपराध के फल से कौनसी गति प्राप्त होती है ? पिता – बहुत प्रारम्भ और बहुत परिग्रह रखने का भाव ही ऐसा अपराध है
जिससे इस जीव को नरक जाना पड़ता है तथा भावों की कुटिलता
अर्थात् मायाचार , छल-कपट तिर्यञ्चायु बंध के कारण हैं। पुत्र – मनुष्य तथा देव................? पिता – अल्प प्रारम्भ और अल्प परिग्रह रखने का भाव और स्वभाव की
सरलता मनुष्यायु के बंध के कारण हैं। एसी प्रकार संयम के साथ रहने वाला शुभभावरूप रागांश और असंयमांश मंदकषायरूप भाव तथा
अज्ञानपूर्वक किये गये तपश्चरण के भाव देवायु के बंध के कारण हैं। पुत्र – उक्त भाव बंध के कारण होने से अपराध ही हैं तो फिर निरपराध
दशा क्या है ? पिता – एक वीतराग भाव ही निरपराध दशा है, अतः वह मोक्ष का कारण है। पुत्र - इन सबके जानने से क्या लाभ है ?
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