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कहीं शरीर को गला देने वाली भयंकर सर्दी पड़ती है । भोजन, पानी का सर्वथा अभाव है। वहाँ जीवों को भयंकर भूख, प्यास की वेदना सहनी पड़ती है। वे लोग तीव्र कषायी भी होते हैं, आपस में लड़तेझगड़ते रहते हैं, मारकाट मची रहती हैं।
जो जीव मरकर ऐसे संयोगों में जन्म लेते हैं, उन्हें नारकी कहते हैं
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पुत्र - और देव ?
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पिता
- जैसे जिन जीवों के भाव होते हैं उनके अनुसार उन्हें फल भी मिलता है । उनके उन्हे फल मिले ऐसे स्थान भी होते हैं। जैसे पाप का फल भोगने का स्थान नरकादि गति है, उसी प्रकार जो जीव पुण्य भाव करता है उनका फल भोगने का स्थान देवगति
है।
देवगति
देवगति में मुख्यतः भोग - सामग्री प्राप्त रहती है ।
जो जीव मरकर देवों में जन्म लेते हैं, उन्हें देवगति के जीव कहते हैं।
पुत्र - अच्छी गति कौनसी है ?
-
पिता
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- जब बता दिया कि चारों गति में दुःख ही है तो फिर गति अच्छी कैसे होगी ? ये चारों संसार हैं।
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इसे छोड़कर जो मुक्त हुए वे सिद्ध जीव पंचमगति वाले हैं एकमात्र पूर्ण आनन्दमय सिद्धगति ही हैं।
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