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पाठ पाँचवाँ
गतियाँ
पुत्र – पिताजी ! आज मन्दिर में सुना था कि “चारों गति के माँहि प्रभु दुःख
पायो मैं घणो।” ये चारों गतियाँ क्या हैं, जिनमें दुःख ही दुःख है। पिता – बेटा! गति तो जीव की अवस्था-विशेष को कहते हैं। जीव संसार में
मोटे तौर पर चार अवस्थाओं में पाये जाते हैं, उन्हें ही चार गतियाँ कहते हैं। जब यह जीव अपनी आत्मा को पहिचान कर उसकी साधना करता है तो चतुर्गति के दुःखों से छूट जाता है और अपना अविनाशी
सिद्ध पद पा लेता है, उसे पंचम गति कहते हैं। पुत्र – वे चार गतियाँ कौन-कौन
सी है ? पिता – मनुष्य, तिर्यंच, नरक और
देव। पुत्र – मनुष्य तो हम तुम भी हैं न ? पिता – हम मनुष्यगति में हैं, अतः
मनुष्य कहलाते हैं। वैसे हैं तो हम तुम भी आत्मा (जीव)।
मनुष्यगति
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