________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
पिता – हाँ, किसी की पड़ी हुई, भूली हुई, रखी हुई वस्तु को बिना उसकी
आज्ञा लिए उठा लेना या उठाकर किसी दूसरे को दे देना तो चोरी है ही, किन्तु यदि परवस्तु का ग्रहण न भी हो परन्तु ग्रहण करने का
भाव ही हो, तो वह भाव भी चोरी है। पुत्र – ठीक है, पर यह कुशील क्या बला है ? लोग कहते हैं कि पराई माँ
बहिन को बुरी निगाह से देखना कुशील है। बुरी निगाह क्या होती
है? पिता – विषय-वासना ही तो बुरी निगाह है। इससे अधिक तुम अभी समझ
नहीं सकते। पुत्र - अनाप-शनाप रूपया-पैसा जोड़ना ही परिग्रह है न? पिता – रूपया-पैसा मकान आदि जोड़ना तो परिग्रह है ही, पर असल में तो
उनके जोड़ने का भाव तथा उनके प्रति राग रखना और उन्हें अपना
मानना परिग्रह है। इस प्रकार की उल्टी मान्यता को मिथ्यात्व कहते हैं। पुत्र – हैं! मिथ्यात्व परिग्रह है ? पिता – हाँ! हाँ !! चौबीस प्रकार के परिग्रहों में सबसे पहिला नम्बर तो उसका
ही आता है। फिर क्रोध, मान, माया और लोभ आदि कषायों का। पुत्र - तो क्या कषायें भी परिग्रह है ? । पिता – हाँ! हाँ!! है ही। कषायें हिंसा भी है और परिग्रह भी। वास्तव में तो
सब पापों की जड़ मिथ्यात्व और कषायें ही हैं। पुत्र - इसका मतलब तो यह हुआ कि पापों से बचने के लिए पहिले
मिथ्यात्व और कषायें छोड़ना चाहिये।
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com