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पिता – तुम बहुत समझदार हो, सच्ची बात तुम्हारी समझ में बहुत जल्दी आ
गई। जो जीव को बुरे रास्ते में डाल दे, उसी को तो पाप कहते हैं। एक तरह से दुःख का कारण बुरा कार्य ही पाप है। मिथ्यात्व और कषायें बुरे काम हैं, अतः पाप हैं।
प्रश्न
१. पाप कितने होते हैं ? नाम गिनाइये। २. जीव घोर पाप क्यों करता है ? ३. क्या सत्य समझे बिना सत्य बोला जा सकता है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए। ४. क्या कषायें परिग्रह हैं ? स्पष्ट कीजिए। ५. द्रव्यहिंसा और भावहिंसा किसे कहते हैं ? ६. पापों से बचने के लिए क्या करना चाहिये ? ७. सबसे बड़ा पाप कौन है और क्यों ?
पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त-वाक्य
१. दुःख का कारण बुरा कार्य ही पाप है। २. मिथ्यात्व और कषायें दुःख के कारण बुरे कार्य होने से पाप है। ३. सबसे बड़ा पाप मिथ्यात्व है। ४. मिथ्यात्व के वश होकर जीव घोर पाप करता है। ५. मिथ्यात्व छूटे बिना भव-भ्रमण मिटता नहीं। ६. उल्टी मान्यता का नाम ही मिथ्यात्व है। ७. सही बात समझकर उसे मानना ही मिथ्यात्व छोड़ना है । ८. आत्मा में उत्पन्न होने वाले मोह-राग-द्वेष ही भावहिंसा है। दूसरों को
सताना आदि तो द्रव्यहिंसा है। ९. सत्य बोलने के पहिले सत्य समझना आवश्यक है। १०. मिथ्यात्व और कषायें परिग्रह के भेद हैं। ११. सब पापों की जड़ मिथ्यात्व और कषायें ही हैं।
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