________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
पुत्र - किसी जीव को सताना, मारना, उसका दिल दुखाना ही हिंसा है
न? पिता – हाँ, दुनियाँ तो मात्र इसी को हिंसा कहती है; पर अपनी प्रात्मा में जो
मोह-राग-द्वेष उत्पन्न होते है वे भी हिंसा है, इसकी खबर उसे
नहीं। पुत्र - ऐं! तो फिर गुस्सा करना और लोभ करना आदि भी हिंसा होगी? पिता – सभी कषायें हिंसा है। कषायें अर्थात् राग-द्वेष और मोह को ही तो
__ भावहिंसा कहते हैं। दूसरों को सताना-मारना आदि तो द्रव्यहिंसा है। पुत्र - जैसा देखा, जाना और सुना हो, वैसा ही न कहना झूठ है, इसमें
सच्ची समझ की क्या जरूरत है ? पिता – जैसा देखा, जाना और सुना हो, वैसा ही न कह कर अन्यथा कहना
तो झूठ है ही, साथ ही जब तक हम किसी बात को सही समझेंगे
नहीं, तब तक हमारा कहना सही कैसे होगा ? पुत्र - जैसा देखा , जाना और सुना, वैसा कह दिया। बस छुट्टी। पिता – नहीं! हमने किसी अज्ञानी से सुन लिया कि हिंसा में धर्म होता है, तो
क्या हिंसा में धर्म मान लेना सत्य हो जायगा ? पुत्र – वाह ! हिंसा में धर्म बताना सत्य कैसे होगा? पिता – इसलिए तो कहते हैं कि सत्य बोलने के पहिले सत्य जानना
आवश्यक है। पुत्र – किसी दूसरे की वस्तु को चुरा लेना ही चोरी हैं ?
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com