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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ दूसरा पाप पुत्र – पिताजी, लोग कहते हैं कि लोभ पाप का बाप है, तो यह लोभ सब से बड़ा पाप होता होगा? पिता – नहीं बेटा, सबसे बड़ा पाप तो मिथ्यात्व हैं, जिसके वश होकर जीव घोर पाप करता हैं। पुत्र - पाँच पापों में तो इसका नाम है नहीं। उनके नाम तो मुझे याद हैं - हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह। पिता – ठीक है बेटा! पर लोभ का नाम भी तो पापों में नहीं है किन्तु उसके वश होकर लोग पाप करते हैं, इसलिए तो उसे पाप का बाप कहा जाता हैं; उसी प्रकार मिथ्यात्व तो ऐसा भयंकर पाप है कि जिसके छूटे बिना संसार-भ्रमण छूटता ही नहीं। पुत्र - ऐसा क्यों ? पिता – उल्टी मान्यता का नाम ही तो मिथ्यात्व है। जब तक मान्यता ही उल्टी रहेगी तब तक जीव पाप छोड़ेगा कैसे ? पुत्र – तो, सही बात समझना ही मिथ्यात्व छोड़ना है ? पिता- हाँ, अपनी आत्मा को सही समझ लेना ही मिथ्यात्व छोड़ना है। जब यह जीव अपनी प्रात्मा को पहिचान लेगा तो और पाप भी छोड़ने लगेगा। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008222
Book TitleBalbodh Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, & Religion
File Size628 KB
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