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[४७ गत हो रहा है, अपना रूप अपने दृष्टिगोचर नहीं है तो भी सूत्रसहित हो ( सूत्रका ज्ञाता हो) तो उसके आत्मा सत्तारूप चैतन्य चमत्कारमयी स्वसंवेदनसे प्रत्यक्ष अनुभव में आती है इसलिये गत नहीं है नष्ट नहीं हुआ है, वह जिस संसार में गत है उस संसारका नाश करता है।
भावार्थ:--यद्यपि आत्मा इन्द्रियगोचर नहीं है तो भी सूत्रके ज्ञाताके स्वसंवेदन प्रत्यक्षसे अनुभवगोचर है, वह सूत्रका ज्ञाता संसार का नाश करता है, आप प्रगट होता है, इसलिये सुईका दृष्टांत युक्त है ।।४।।
आगे सूत्रमें अर्थ क्या है वह कहते हैं---
सुत्तत्थं जिणभणियं जीवाजीवादिबहुविहं अत्थं। हेयाहेयं च तहा जो जाणइ सो हु सट्ठिी ।।५।। सूत्रार्थं जिनभणितं जीवाजीवादिबहुविधमर्थम्। हेयाहेयं च तथा यो जानाति स हि सद्दृष्टिः।।५।।
अर्थ:--सूत्रका अर्थ जिन सर्वज्ञ देवने कहा है, और सूत्र का अर्थ जीव अजीव बहुत प्रकार का है तथा हेय अर्थात् त्यागने योग्य और अहेय अर्थात् त्यागने योग्य नहीं, इसप्रकार आत्माको जो जानता है वह प्रगट सम्यग्दृष्टि है।
भावार्थ:--सर्वज्ञ भाषित सूत्र में जीवादिक नव पदार्थ और इनमें हेय उपादेय इसप्रकार बहुत प्रकारसे व्याख्यान है उसको जो जानता है वह श्रद्धावान सम्यग्दृष्टि होता है ।।५।।
आगे कहते हैं कि जिनभाषित सूत्र व्यवहार-परमाथररूप दो प्रकार है, -सको जानकर योगीश्वर शुद्धभाव करके सुख को पाते हैं----
जिनसूत्रमा भाखेल जीव-अजीव आदि पदार्थने, हेयत्व-अणहेयत्व सह जाणे, सुदृष्टि तेह छ। ५।
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