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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ३७८] [अष्टपाहुड के विष हो नष्ट होते हैं वैसे ही स्थावर विष मोहरा, सोमल आदिक और जंगम का विष सर्प, घोहरा आदिक का---इन विषों से भी प्राणी मारे जाते हैं, परंतु सब विषों में विषयों का विष अति ही तीव्र है।। २१।। आगे इसी का समर्थन करने के लिये विषयों के विषका तीव्रपना कहते हैं कि--विषकी वेदना से तो एकबार मरता है और विषयों से संसार में भ्रमण करता है:--- वारि एक्कम्मि य जम्मे मरिज्ज विसवेयणाहदो जीवो। विसयविसपरिहया णं भमंति संसारकंतारे।। २२।। वारे एकस्मिन् जन्मनि गच्छेत् विषवेदनाहतः जीवः । विषयविषपरिहता भ्रमंति संसारकांतारे।। २२।। अर्थ:--विष की वेदना से नष्ट जीव तो एक जन्म में ही मरता है परन्तु विषयरूप विषसे नष्ट जीव अतिशयतया – बारबार संसाररूपी वन में भ्रमण करते हैं। (पुण्य की और राग की रुचि वही विषय बुद्धि है।) भावार्थ:--अन्य सपारदिक के विषसे विष्यों का विष प्रबल है, इनकी आसक्ति से ऐसा कर्मबंध होता है कि उससे बहुत जन्म-मरण होते हैं।। २२।। आगे कहते हैं कि विषयों की आसक्ति से चतुर्गति में दुःख ही पाते हैं:--- णरएसु वेयणाओ तिरिक्खए माणवेसु दुक्खाई। देवेसु वि दोहग्गं लहंति विसयासिया जीवा।।२३।। नरकेषु वेदनाः तिर्यक्षु मानुषेषु दुःखानि। देवेषु अपि दौर्भाग्यं लभंते विषयासक्ता जीवाः ।। २३।। अर्थ:--विषयों में आसक्त जीव नरकमें अत्यंत वेदना पाते हैं, तिर्यंचों में तथा विषवेदनाहत जीव ओक ज वार पामे मरणने, पण विषयविषहत जीव तो संसारकांतारे भने। २२ । बहु वेदना नरको विषे, दुःखो मनुज-तिर्यंचमां, देवेय दुर्भगता लहे विषयावलंबी आतमा। २३ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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