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शीलपाहुड
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सीलं तवो विसुद्धं दंसणसुद्धी य णाण सुद्धीय। सीलं विसयाण अरी सीलं मोक्खस्स सोवाणं।।२०।।
शीलं तपः विशुद्ध दर्शनशुद्धिश्च ज्ञान शुद्धिश्च। शीलं विषयाणामरिः शीलं मोक्षस्य सोपानम्।।२०।।
अर्थ:--शील ही विशुद्ध निर्मल तप है, शील ही दर्शन की शुद्धता है, शील ही ज्ञान की शुद्धता है, शील ही विषयोंका शत्रु है और शील ही मोक्ष की सीढ़ी है।
भावार्थ:--जीव अजीव पदार्थों का ज्ञान करके उसमें से मिथ्यात्व और कषायों का अभाव करान वह सुशील है, यह आत्मा का ज्ञान स्वभाव है वह संसार प्रकृति मिटकर मोक्ष सन्मुख प्रकृति हो तो तब इस शील ही के तप आदिक सब नाम हैं---निर्मल तप, शुद्ध दर्शन ज्ञान, विषय - कषायों का मेटना, मोक्ष की सीढ़ी ये सब शील के नाम के अर्थ हैं, ऐसे शील के महात्म्य का वर्णन किया है और यह केवल महिमा ही नहीं है इन सब भावों के अविनाभावीपना बताया है।। २० ।।
आगे कहते हैं कि विषयरूप विष महा प्रबल है:---
जह विसयलुद्ध विसदो तह थावरजंगमाण घोराणं। सव्वेसिं पिविणासदि विसयविसं दारुणं होई।।२१।।
यथा विषय लुब्धः विषदः तथा स्थावर जंगमान् घोरान्। सर्वान् अपि विनाशयति विषयविसं दारुणं भवति।।२१।।
अर्थ:--जैसे विषय सेवनरूपी विष विषय-लुब्ध जीवों को विष देनेवाला है, वैसे ही घोर तएव्र स्थावर-जंगम सब ही विष प्राणियों का विनाश करते हैं तथापि इन सब विषों में विषयों का विष उत्कृष्ट है तीव्र है।
भावार्थ:--जैसे हस्ती मीन भ्रमर पतंग आदि जीव विषयों में लुब्ध होकर विषयों
छ शील ते तप शुद्ध, ते दृग शुद्धि, ज्ञानविशुद्धि छे, छ शील अरि विषयो तणो ने शील शीव सोपान छ। २०।
विष घोर जंगम-स्थावरोनुं नष्ट करतुं सर्वने, पण विषयलुब्धतणुं विघातक विषयविष अति रौद्र छ। २१ ।
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