SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १६] [अष्टपाहुड भावार्थ:--सम्यक्त्व के बिना हजार कोटी वर्ष तप करने पर भी मोक्षमार्गकी प्राप्ति नहीं होती। यहाँ हजार कोटी कहने का तात्पर्य उतने ही वर्ष नहीं समझना, किन्तु काल का बहुतपना बतलाया है। तप मनुष्य पर्याय में ही होता है, इसलिये मनुष्य काल भी थोड़ा है, इसलिये तप का तात्पर्य यह वर्ष भी बहुत कहे हैं ।।५।। ---ऐसे पूर्वोक्त प्रकार सम्यक्त्वके बिना चारित्र, तप को निष्फल कहा है। अब सम्यक्त्व सहित सभी प्रवृत्ति सफल है----ऐसा कहते हैं:--- सम्मत्तणाणदंसणबलवीरियवड्ढमाण जे सव्वे। कलिकलुसपावरहिया वरणाणी होंति अइरेण।।६।। सम्यक्त्वज्ञानदर्शनबलवीर्य वर्द्धमानाः ये सर्वे। कलिकलुषपापरहिताः वरज्ञानिनः भवंति अचिरेण।।६।। अर्थ:--जो पुरुष सम्यक्त्व ज्ञान, दर्शन, बल, वीर्यसे, वर्द्धमान हैं तथा कलिकलुषपाप अर्थात् इस पंचमकाल में मलिन पापसे रहित हैं वे सभी अल्पकाल में वरज्ञानी अर्थात् केवलज्ञानी होते हैं। भावार्थ:--इस पंचमकाल में जड़-वक्र जीवोंके निमित्तसे यथार्थ मार्ग अपभ्रंश हुआ है। उसकी वासना से जो जवि रहित है हए वे यथार्थ जिनमार्ग के श्रद्धानरूप सम्यक्त्व सहित ज्ञान-दर्शनके अपने पराक्रम- बलको न छिपाकर तथा अपने वीर्य अर्थात शक्तिसे वर्द्धमान होते हुए प्रवर्तते हैं, वे अल्पकालमें ही केवलज्ञानी होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं ।।६।। अब कहते हैं कि --सम्यक्त्वरूपी जलका प्रवाह आत्माको कर्मरज नहीं लगने देता : सम्मत्तसलिलपवहो णिच्चं हिया ए पयट्टए जस्स। कम्मं वालुयवरणं बंधुच्चिय णासए तस्स।।७।। सम्यक्त्वसलिलप्रवाह: नित्यं हृदये प्रवर्त्तते यस्य। कर्म वालुकावरणं बद्धमपि नश्यति तस्य ।।७।। सम्यकत्व-दर्शन-ज्ञान-बल-वीर्ये अहो! वधता रहे, कलिमसरहित जे जीव, वरज्ञानने अचिरे लहे। ६। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy