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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates मोक्षपाहुड] [३०१ भावार्थ:--जिनमत में ऐसा उपदेश है कि जो हिंसादिक पापों से विरक्त हो, विषयकषायोंसे आसक्त न हो और परमात्माका स्वरूप जानकर उसकी भावनासहित जीव होता है वह मोक्षको प्राप्त कर सकता है, इसलिये जिनमत की मुद्रा से जो पराङमुख है उसको मोक्ष कैसे हो? वह तो संसार में ही भ्रमण करता है। यहाँ रुद्रका विशेषण दिया है उसका ऐसा भी आशय है कि रुद्र ग्यारह होते हैं, ये विषय-कषायों में आसक्त हो कर जिनमुद्रा से भ्रष्ट होते हैं, इनको मोक्ष नहीं होता है, इनकी कथा पुराणों से जानना।। ४६।। आगे कहते हैं कि जिनमुद्रा से मोक्ष होता है किन्तु यह मुद्रा जिन जीवों को नहीं रुचती है वे संसार में ही रहते हैं:-- जिणमुदं सिद्धिसुहं हवेइ णियमेण जिणवरुद्दिटुं। सिविणे वि ण रुच्चइ पुण जीवा अच्छंति भवगहणे।। ४७।। जिनमुद्रा सिद्धिसुखं भवति नियमेन जिनवरोद्दिष्टा। स्वप्नेऽपि न रोचते पुनः जीवाः तिष्ठति भवगहने।। ४७।। अर्थ:--जिन भगवान के द्वारा कही गई जिन मुद्रा है वही सिद्धिसुख है मुक्तसुख ही है, यह कारण में कार्य का उपचार जानना; जिनमुद्रा मोक्ष का कारण है, मोक्षसुख उसका कार्य है। ऐसी जिनमुद्रा जिनभगवान ने जैसी कही है वैसी ही है। तो ऐसी जिनमुद्रा जिस जीव को साक्षात् तो दूर ही रहो, स्वप्न में भी कदाचित् भी नहीं रुचति है, उसका स्वप्न आता है तो भी अवज्ञा आती है तो वह जीव संसाररूप गहन वन में रहता है, मोक्ष के सुख को प्राप्त नहीं कर सकता। भावार्थ:--जिनदेवभाषित जिनमुद्रा मोक्षका कारण है वह मोक्षरूपी ही है, क्योंकि जिनमुद्रा के धारक वर्तमान में भी स्वाधीन सुख को भोगते हैं और पीछे मोक्ष के सुख को प्राप्त करते हैं। जिस जीव को यह नहीं रुचती है वह मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता. संसार ही में रहता है।। ४७।। आगे कहते हैं कि जो परमात्माका ध्यान करता है वह योगी लोभरहित होकर नवीन कर्मका आस्रव नहीं करता है:--- जिनवरवृषभ-उपदिष्ट जिनमुद्रा ज शिवसुख नियमथी, ते नव रूचे स्वप्नेय जेने, ते रहे भववन महीं। ४७। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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