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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २९६ ] [ अष्टपाहुड हैं, जीवके हित हैं, और इनमें भी सम्यग्दर्शन प्रधान है क्योंकि इसके बिना ज्ञान, चारित्र भी मिथ्या कहलाते हैं, इसलिये सम्यग्दर्शन प्रधान जानकर पहिले अंगीकार करना, यह उपदेश मुनि तथा श्रावक सभीको है ।। ४० ।। आगे सम्यग्ज्ञानका स्वरूप कहते हैं: जीवाजीवविहत्ती जोई जाणेइ जिणवरमएण । तं सण्णाणं भणियं अवियत्थं सव्वदरसीहिं ।। ४१ ।। जीवाजीवविभक्ति योगी जानाति जिनवरमतेन । तत् संज्ञानं भणितं अवितथं सर्वदर्शिभिः ।। ४१ ।। अर्थः--जो योगी मुनि जीव - अजीव पदार्थके भेद जिनवरके मतसे जानता है वह सम्यग्ज्ञान है ऐसा सर्वदर्शी सबको देखनेवाले सर्वज्ञ देव ने कहा है अतः वह ही सत्यार्थ है, अन्य छद्मस्थका कहा हुआ सत्यार्थ नहीं है असत्यार्थ है, सर्वज्ञका कहा हुआ ही सत्यार्थ है। भावार्थः--सर्वज्ञदेव ने जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल ये जाति अपेक्षा छह द्रव्य कहे हैं। [ संख्या अपेक्षा एक, एक, असंख्य और अनंतानंत हैं । ] इनमें जीव को दर्शनज्ञानमयी चेतनास्वरूप कहा है, यह सदा अमूर्तिक है अर्थात् स्पर्श, रस, गंध, वर्णसे रहित है। पुद्गल आदि पाँच द्रव्योंको अजीव कहे हैं ये अचेतन हैं जड़ । इनमें पुद्गल स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्दसहित मूर्तिक ( - रूपी) हैं, इन्द्रियगोचर है, अन्य अमूर्तिक हैं। आकश आदि चार तो जैसे हैं वैसे ही रहते हैं। जीव और पुद्गल के अनादि संबंध हैं। छद्मस्थके इन्द्रियगोचर पुद्गल स्कंध हैं उनको ग्रहण करके जीव राग-द्वेष - मोहरूपी परिणमन करता है शरीरादिको अपना मानता तथा इष्ट-अनिष्ट मानकर राग-द्वेषरूप होता इससे नवीन पुद्गल कर्मरूप होकर बंधको प्राप्त होता है, यह निमित्त - नैमित्तिक भाव है, इसप्रकार यह जीव अज्ञानी होता हुआ जीव- पुद्गलके भेदको न जानकर मिथ्याज्ञानी होता है। इसलिये आचार्य कहते हैं कि जिनदेवके मत से जीव-अजीवका भेद जानकर सम्यग्दर्शन का स्वरूप जानना। इसप्रकार जिनदेवने कहा वह ही सत्यार्थ है, प्रमाण - नयके द्वारा ऐसे ही सिद्ध होता है इसलिये जिनदेव सर्वज्ञने सब वस्तुको प्रत्यक्ष देखकर कहा है। जीव-अजीव केरो भेद जाणे योगी जिनवरमार्गथी, सर्वज्ञदेवे तेहने सद्ज्ञान भाख्यं तथ्यथी । ४१ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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