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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates मोक्षपाहुड] /२९५ दसणसुद्धो सुद्धो दंसणसुद्धो लहेइ णिव्वाणं। दंसणविहीणपुरिसो ण लहइ तं इच्छियं लाह।। ३९ ।। दर्शनशुद्धः शुद्धः दर्शनशुद्धः लभते निर्वाणम्। दर्शनविहीन पुरुषः न लभते तं इष्टं लाभम्।। ३९ ।। अर्थ:--जो पुरुष दर्शनसे शुद्ध है वह ही शुद्ध है, क्योकि जिसका दर्शन शुद्ध है वही निर्वाण को पाता है और जो पुरुष सम्यग्दर्शन से रहित है वह पुरुष ईप्सित लाभ अर्थात् मोक्षको प्राप्त नहीं कर सकता है। १ कोडे व भावार्थ:--लोकमें प्रसिद्ध है कि कोई प चाहे और उसकी रुचि प्रतीति श्रद्धा न हो तो उसकी प्राप्ति नहीं होती है, इसलिये सम्यग्दर्शन ही निर्वाणकी प्राप्ति में प्रधान है।। ३९ ।। आगे कहते हैं कि ऐसा सम्यग्दर्शनको ग्रहण करने का उपदेश सार है, उसको जो मानता है वह सम्यक्त्व है:-- इय उवएसं सारं जरमरणहरं खु मण्णए जं तु। तं सम्मत्तं भणियं सवणाणं सावयाणं पि।। ४०।। इति उपदेशं सारं जरा मरण हरं स्फुटं मन्यते यत्तु। तत् सम्यक्त्वं भणितं श्रमणानां श्रावकाणामपि।। ४०।। अर्थ:--इसप्रकार सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रका उपदेश सार है, जो जरा व मरण को हरनेवाला है, इसको जो मानता है श्रद्धान करता है वह ही सम्यक्त्व कहा है। वह मुनियों तथा श्रावकोंको सभी को कहा है इसलिये सम्यक्त्वपूर्वक ज्ञान चारित्र को अंगीकार करो। भावार्थ:--जीवके जितने भाव हैं उनमें समयग्दर्शन - ज्ञान -चारित्र सार हैं उत्तम -------- दृगशुद्ध आत्मा शुद्ध छे, दृगशुद्ध ते मुक्ति लहे, दर्शनरहित जे पुरुष ते पामे न इच्छित लाभने। ३९ । जरमरणहर आ सारभूत उपदेश श्रद्धे स्पष्ट जे, सम्यक्त्व भाख्युं तेहने, हो श्रमण के श्रावक भले। ४०। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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