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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २७२] [अष्टपाहुड उन देवको मंगलके लिये नमस्कार किया यह युक्त है। जहाँ जैसा प्रकरण वहाँ वैसी योग्यता। यहाँ भाव-मोक्ष तो अरहंत के है और द्रव्य-भाव दोनों प्रकारके मोक्ष परमेष्ठी के हैं, इसलिये दोनों को नमस्कार जानो।। १।। आगे इसप्रकार नमस्कार कर ग्रंथ करने की प्रतिज्ञा करते हैं:--- णमिऊण य तं देवं अणंतवरणाणदंसणं सुद्धं । वोच्छं परमप्पाणं परमपयं परम जोईणं ।।२।। नत्वा च तं देवं अनंतवरज्ञानदर्शनं शुद्धम्। वक्ष्ये परमात्मानं परमपदं परमयोगिनाम।।२।। अर्थ:--आचार्य कहेत हैं कि उस पूर्वोक्त देवको नमस्कार कर, परमात्मा जो उत्कृष्ट शुद्ध आत्मा उसको, परम योगीश्वर जो उत्कृष्ट - योग्य ध्यानके करने वाले मुनिराजों के लिये कहूँगा। कैसा है पूर्वोक्त देव? जिनके अनन्त और श्रेष्ठ ज्ञान - दर्शन पाया जाता है, विशुद्ध है - कर्ममल से रहित है, जिसका पद परम-उत्कृष्ट है। भावार्थ:--इस ग्रंथ में मोक्ष को जिस कारणसे पावे और जैसा मोक्षपद है वैसा वर्णन करेंगे, इसलिये उस रीति उसी की प्रतीज्ञा की है। योगीश्वरोंके लिये कहेंगे, इसका आशय यह है कि ऐसे मोक्षपद को शुद्ध परमात्माके ध्यानके द्वारा प्राप्त करते हैं, उस ध्यान की योग्यता योगीश्वरों के ही प्रधानरूपसे पाई जाती है, गृहस्थों के यह ध्यान प्रधान नहीं है।। २।। आगे कहते हैं कि जिस परमात्माको कहने की प्रतीज्ञा की है उसको योगी ध्यानी मुनि जानकर उसका ध्यान करके परम पदको प्राप्त करते हैं:--- जं जाणिऊण जोई जोअत्थो जोइऊण अणवरयं। अव्वाबाहमणंतं अणोवमं लहइ णिव्वाणं।।३।। ते देवने नमी अमित-वर-दृगज्ञानधरने शुद्धने, कहुं परमपद-परमातमा प्रकरण परमयोगीन्द्रने। २। जे जाणीने योगस्थ योगी, सतत देखी जेहने, उपमाविहीन अनंत अव्याबाध शिवपदने लहे। ३। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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