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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates मोक्षपाहुड 卐 -६明明明明明明明明明明明明明事项 ऊँ नमः सिद्धेभ्यः। अथ मोक्षपाहुडकी वचनिका लिख्यते। प्रथम ही मंगलके लिये सिद्धोंको नमस्कार करते हैं:--- (दोहा) अष्ट कर्मको नाश करि शुद्ध अष्ट गुण पाय। भये सिद्ध निज ध्यानते नमूं मोक्ष सुखदाय।।१।। इसप्रकार मंगलके लिये सिद्धोंको नमस्कार कर श्रीकुन्दकुन्द आचार्यकृत 'मोक्षपाहुड' ग्रंथ प्राकृत गाथाबद्ध है, उसकी देशभाषामय वचनिका लिखते हैं। प्रथम ही आचार्य मंगलके लिये परमात्मा को नमस्कार करते हैं:--- णाणमयं अप्पाणं उवलद्धं जेण झडियकम्मेण। चइऊण य परदव्वं णमो णमो तस्स देवस्स।।१।। ज्ञानमय आत्मा उपलब्धः येन क्षरितकर्मणा। त्यक्ता च परद्रव्यं नमो नमस्तस्मै देवाय।।१।। अर्थ:--आचार्य कहते हैं कि जिनने परद्रव्यको छोड़कर, द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म खिर गये हैं ऐसे होकर, निर्मल ज्ञानमयी आत्माको प्राप्त कर लिया है इसप्रकारके देवको हमारा नमस्कार हो - नमस्कार हो! दो बार कहने में अति प्रीतियुक्त भाव बताये हैं। भावार्थ:--यह 'मोक्षपाहुड' का प्रारंभ है। यहाँ जिनने समस्त परद्रव्य को छोड़ छोड़कर कर्मका अभाव करके केवलज्ञानानंदस्वरूप मोक्षपदको प्राप्त कर लिया है, -------------------------------------------------------- करीने क्षपण कर्मो तणं, परद्रव्य परिहरी जेमणे ज्ञानात्म आत्मा प्राप्त कीधो, नमुं नमुं ते देवने। १। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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