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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [२५५ भावपाहुड] अर्थ:-----'जीव' नामक पदार्थ है सो कैसा है---कर्ता है, भोक्ता है, अमूर्तिक है, शरीरप्रमाण है, अनादि निधन है, दर्शन - ज्ञान उपयोगवाला है, इसप्रकार जिनवरेन्द्र सर्वज्ञदेव वीतराग ने कहा है। भावार्थ:--यहाँ 'जीव' नामक पदार्थ के छह विशेषण कहे। इनका आशय ऐसा है कि १ - 'कर्ता' कहा, वह निश्चयनय से अपने अशुद्ध भावोंका अज्ञान अवस्था में आप ही कर्ता है तथा व्यवहारनयसे ज्ञानावरणादि पुद्गल कर्मों का कर्ता है और शुद्धनय से अपने शुद्धभावों का कर्ता है। २ - 'भोक्ता' कहा, वह निश्चयनयसे तो अपने ज्ञान - दर्शनमयी चेतनाभावका भोक्ता है और व्यवहार नयसे पुद्गलकर्मके फल जो सुख-दुःख आदिका भोक्ता है। ३ – 'अमूर्तिक' कहा, वह निश्चयसे तो स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, शब्द ये पुद्गल के गुण-पर्याय हैं, इनसे रहित अमूर्तिक है और व्यवहार से जबतक पुद्गल कर्मसे बंधा है तब तक 'मूर्तिक' भी कहते हैं। ४ - 'शरीरपरिमाण' कहा, वह निश्चयसे तो असंख्यातप्रदेशी लोकपरिमाण है, परन्तु संकोच – विस्तारशक्तिसे शरीर से कुछ कम प्रदेश प्रमाण आकार में है। ५ - 'अनादिनिधन' कहा, वह पर्यायदृष्टि से देखने पर तो उत्पन्न होता है, नष्ट होता है, तो भी द्रव्यदृष्टि से देखा जाये तो अनादिनिधन सदा नित्य अविनाशी है। ६ - ‘दर्शन - ज्ञान उपयोगसहित' कहा, वह देखने-जाननेरूप उपयोगस्वरूप चेतनारूप है। इन विशेषणोंसे अन्यमती अन्यप्रकार सर्वथा एकान्तरूप मानते हैं उनका निषेध भी जानना चाहिये। 'कर्ता' विशेषणसे तो सांख्यमती सर्वथा अकर्ता मानता है उसका निषेध है। ‘भोक्ता' विशेषणसे बौद्धमती क्षणिक मानकर कहता है कि कर्म को करने वाला तो ओर है तथा भोगने वाला ओर है, इसका निषेध है। जो जीव कर्म करता है उसका फल वही जीव भोगता है, इस कथन से बौद्धमती के कहने का निषेध है। 'अमूर्तिक' कहने से मीमांसक आदि इसे शरीर सहित मूर्तिक ही मानते हैं, उनका निषेध है। 'शरीरप्रमाण' कहने से नैयायिक. वैशेषिक. वेदान्ती आदि सर्वथा. सर्वव्यापक मानते हैं उनका निषेध है। 'अनादिनिधन' कहनेसे बौद्धमती सर्वथा क्षणस्थायी मानता है , उसका निषेध है। 'दर्शनज्ञानउपयोगमयी' कहने से सांख्यमती Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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