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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २] [ अष्टपाहुड वहाँ प्रयोजन ऐसा है कि- इस हुण्डावसर्पिणी काल में मोक्षमार्गकी अन्यथा प्ररूपणा करनेवाले अनेक मत प्रवर्तमान हैं। उसमें भी इस पंचमकाल में केवली - श्रुतकेवलीका व्युचछेद होने जिनमतकी भी जड़ वक्र जीवोंके निमित्तसे परम्परा मार्ग का उल्लंघन करके श्वेताम्बरादि बुद्धि कल्पितमत हुए हैं। उनका निराकरण करके यथार्थ स्वरूपकी स्थापनाके हेतु दिगमबर आम्नाय मूलसंघमें आचार्य हुए और उन्होंने सर्वज्ञकी परम्पराके अव्युच्छेदरूप प्ररूपणाके अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है; उनमें दिगम्बर संप्रदाय मूलसंघ नन्दिआम्नाय सरस्वतीगच्छमें श्री कुन्दकुन्दमुनि हुए और उन्होंने पाहुड ग्रन्थोंकी रचना की। उन्हें संस्कृत भाषामें प्राभृत कहते हैं और वे प्राकृत गाथाबद्ध हैं। कालदोषसे जीवों की बुद्धि मंद होती है जिससे वे अर्थ नहीं समझ सकते; इसलिये देशभाषामय वचनिका होगी तो सब पढ़ेंगे और अर्थ समझेंगे तथा श्रद्धान दृढ़ होगाऐसा प्रयोजन विचारकर वचनिका लिख रहें हैं, अन्य कोई ख्याति, बढ़ाई या लाभका प्रयोजन नहीं है। इसलिये हे भव्य जीवों ! उसे पढ़कर, अर्थसमजकर, चित्तमें धारण करके यथार्थ मतके बाह्यलिंग एवं तत्त्वार्थका श्रद्धान दृढ़ करना । इसमें कुछ बुद्धि की मंदतासे तथा प्रमादके वश अन्यथा अर्थ लिख दूँ तो अधिक बुद्धिमान मूलग्रन्थको देखकर, शुद्ध करके पढ़े और मुझे अल्पबुद्धि जानकर क्षमा करें। अब यहाँ प्रथम दर्शनपाहुड की वचनिका लिखते हैं : (दोहा) बंदू श्री अरहंतकूं मन वच तन इकतान। मिथ्याभाव निवारिकैं करें सुदर्शन ज्ञान ।। अब ग्रन्थकर्ता श्री कुन्दकुन्दाचार्य ग्रन्थके आदिमें ग्रन्थकी उत्पत्ति और उसके ज्ञानका कारण जो परम्परा गुरु प्रवाह उसे मंगलके हेतु नमस्कार करते हैं : काऊण णमुक्कारं जिणवरसहस्स वइढमाणस्स । दंसणमग्गं वोच्छामि जहाकम्मं समासेण ।। १ ।। कृत्वा नमस्कारं जिनवरवृषभस्य वर्द्धमानस्य । दर्शनमार्गं वक्ष्यामि यथाक्रमं समासेन ॥ १ ॥ प्रारंभमा करीने नमन जिनवरवृषभ महावीरने, संक्षेपथी हुं यथाक्रमे भाखीश दर्शनमार्ग ने। १ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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