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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates भावपाहुड] [२०५ तेरह क्रिया इसप्रकार हैं---पँच परमेष्ठी को नमस्कार ये पाँच क्रिया. छह आवश्यक क्रिया. 'निषिधिक्रिया और आसिकाक्रिया। इसप्रकार भाव शुद्ध होनेके कारण कहे।।८०।। आगे द्रव्य - भावरूप सामान्यरूपसे जिनलिंगका स्वरूप कहते हैं:--- पंचविहचेलचायं खिदिसयण दुविहसंजमं भिक्खू। भावं भावियपुव्वं जिणलिंगं णिम्मलं सुद्धं ।। ८१।। पंचविधचेलत्यागं क्षितिशयनं द्विविध संयमं भिक्षु। भावभावयित्वा पूर्वं जिनलिंगं निर्मलं शुद्धम्।। ८१।। अर्थ:--निर्मल शुद्ध जिनलिंग इसप्रकार है----जहाँ पाँच प्रकार के वस्त्र का त्याग है, भूमि पर शयन है, दो प्रकार का संयम है, भिक्षा भोजन है, भावितपूर्व अर्थात् पहिले शुद्ध आत्मा का स्वरूप परद्रव्य से भिन्न सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रमयी हुआ, उसे बारम्बार भावना से अनुभव किया इसप्रकार जिसमें भाव है, ऐसा निर्मल अर्थात् बाह्यमलरहित शुद्ध अर्थात् अन्तर्मलरहित जिनलिंग है। भावार्थ:--यहाँ लिंग द्रव्य-भावसे दो प्रकारका है। द्रव्य तो बाह्य त्याग अपेक्षा है जिसमें पाँच प्रकारके वस्त्रका त्याग है, वे पाँच प्रकार ऐसे हैं----१- अंडज अर्थात् रेशम से बना, २- बोंडुज अर्थात् कपास से बना, ३- रोमज अर्थात् ऊन से बना, ४- बल्कलज अर्थात् वृक्ष की छाल से बना, ५- चर्मज अर्थात् मृग आदिकके चर्मसे बना, इसप्रकार पाँच प्रकार कहे। इसप्रकार नहीं जानना कि इनके सिवाय और वस्त्र ग्राह्य हैं - ये तो उपलक्षण मात्र कहें हैं, इसलिये सबही वस्त्रमात्र का त्याग जानना। भूमि पर सोना, बैठना इसमें काष्ठ - तृण भी गिन लेना। इन्द्रिय और मन को वश में करना, छहकाय जीवोंकी रक्षा करना---इसप्रकार दो प्रकारका संयम है। १ निषिधिका---जिनमंदिर में प्रवेश करते ही गृहस्थ या व्यंतरादिदेव कोई उपसिथत है---ऐसा मानकर आज्ञार्थ 'निःसही' शब्द तीन बार बोलने में आता है, अथवा सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रमें स्थिर रहना 'निःसही' है। २ धर्मस्थान से बाहर निकलते समय विनयसह त्रियादि की आज्ञा मांगने के अर्थ में 'आसिका' शब्द बोले, अथवा पापक्रिया से मनमोड़ना 'आसिका' है। भूशयन, भिक्षा, द्विविध संयम, पंचविध-पटत्याग छे, छे भाव भावित पूर्व, ते जिनलिंग निर्मळ शुद्ध छ। ८१ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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