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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates भावपाहुड] /१७३ कालमणंतं जीवो जम्मजरामरणपीडिओ दुक्खं। जिणलिंगेण वि पत्तो परंपराभावरहिएण।।३४।। कालमनंतं जीव: जन्मजरामरणपीडितः दुःखम्। जिनलिंगेन अपि प्राप्तः परम्पराभावरहितेन।।३४।। अर्थ:--यह जीव इस संसार में जिसमें परम्परा भावलिंग न होने से अनंतकाल पर्यन्त जन्म-जरा-मरण से पीड़ित दुःख को ही प्राप्त हुआ। भावार्थ:--द्रव्यलिंग धारण किया और उसमें परम्परासे भी भावलिंग की प्राप्ति न हुई इसलिये द्रव्यलिंग निष्फल गया, मुक्ति की प्राप्ति नहीं हुई, संसार में भ्रमण किया। यहाँ आशय इसप्रकार है कि---द्रव्यलिंग है वह भावलिंग का साधन है, परन्तु काललब्धि बिना द्रव्यलिंग धारण करने पर भी भावलिंगकी प्राप्ति नहीं होती है, इसलिये द्रव्यलिंग निष्फल जाता है। इसप्रकार मोक्षमार्ग में प्रधान भावलिंग ही है। यहाँ कोई कहे कि इसप्रकार है तो द्रव्यलिंग पहले क्यों धारण करें ? उसको कहते हैं कि---इसप्रकार माने तो व्यवहार का लोप होता है, इसलिये इसप्रकार मानना जो द्रव्यलिंग पहिले धारण करना, इसप्रकार न जानना कि इसी से सिद्धि है। भावलिंगी को प्रधान मानकर उसके सन्मख उपयोग रखना, द्रव्यलिंगको यत्नपूर्वक साधना, इसप्रकार का श्रद्धान भला है।। ३४।। १(१) काललब्धि- स्वसमय - निजस्वरूप परिणाम की प्राप्ति। (आत्मावलोकन गाथा० ९) (२) काललब्धि का अर्थ स्वकाल की प्राप्ति है। (३) यदायं जीवःआगमभाषाया कालादि लब्धिरूपमध्यात्मभाषाया शुद्धात्मभिमुखं परिणामरूपं स्वसंवेदनज्ञानं लभंते.... अर्थ - जब यह जीव आगम भाषा से कालादि लब्धिको प्राप्त करता है तथा अध्यात्म भाषा से शुद्धात्माके सन्मुख परिणामरूप स्वसंवेदनज्ञान को प्राप्त करता है।' (पंचास्तिकाय गा० १५०-१५१ जयसेनाचार्य टीका) (४) विशेष देखो मोक्षमार्गप्रकाशक अ० ९।। जीव जनि-जरा-मृततप्त काळ अनंत पाम्यो दु:खने, जिनलिंगने पण धारी पारंपर्यभावविहीनने। ३४ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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