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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १७२] [अष्टपाहुड इसप्रकार सत्रह प्रकार कहे। इनका संक्षेप इसप्रकार है---मरण पाँच प्रकार के हैं--१ पंडितपंडित, २ पंडित, ३ बालपंडित, ४ बाल, ५ बालबाल। जो दर्शन ज्ञान चारित्र के अतिशय सहित हो वह पंडितपंडित है और इनकी प्रकर्षता जिनके न हो वह पंडित है, सम्यग्दृष्टि श्रावक वह बालपंडित और पहिले चार प्रकारके पंडित कहे उनमेह से एक भी भाव जिसके नहीं है वह बाल है तथा जो सबसे न्यून हो वह बालबाल है। इनमें पंडितपंडितमरण, पंडितमरण और बालपंडितमरण ये तीन प्रशस्त सुमरण कहे हैं, अन्य रीति होवे वह कुमरण है। इसप्रकार जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र एकदेश सहित मरे वह ‘सुमरण' है; इसप्रकार सुमरण करने का उपदेश है।। ३२।। आगे यह जीव संसारमें भ्रमण करता है, उस भ्रमणके परावर्तन का स्वरूप मनमें धारणकर निरूपण करते हैं। प्रथम ही सामान्यरूप लोकके प्रदेशों की अपेक्षासे कहते हैं:--- सो णत्थि दव्वसवणो परमाणुपमाणमेत्तओ णिलओ। जत्थ ण जाओ ण मओ तियलोयपमाणिओ सव्वो।।३३।। सः नास्ति द्रव्यश्रमणः परमाणुप्रमाणमात्रोनिलयः। यत्र न जातः न मृतः त्रिलोकप्रमाणकः सर्वः।। ३३ ।। अर्थ:--यह जीव द्रव्यलिंग का धारक मुनिपना होते हुए भी जो तीनलोक प्रमाण सर्व स्थान हैं उनमें एक परमाणु परिमाण एक प्रदेशमात्र भी ऐसा स्थान नहीं है कि जहाँ जन्ममरण न किया हो। भावार्थ:--द्रव्यलिंग धारण करके भी इस जीवने सर्व लोकमें अनन्तबार जन्म और मरण किये, किन्तु ऐसा कोई प्रदेश शेष न रहा कि जिसमें जन्म और मरण न किये हों। इसप्रकार भावलिंग के बिना द्रव्यलिंग से मोक्ष की (--निजपरमात्मदशा की) प्राप्ति नहीं हुई--ऐसा जानना।। ३३ ।। आगे इसी अर्थ को दृढ़ करने के लिये भावलिंग को प्रधान कर कहते हैं:--- त्रण लोकमां परमाणु सरखं स्थान कोई रह्यं नथी, ज्यां द्रव्यश्रमण थयेल जीव मर्यो नथी, जन्म्यो नथी। ३३। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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